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________________ मारीने सघळी पृथ्वीनो (त्रण खंडनो ) राजा थयो ॥ ५४॥ अने कुंतीना पुत्र युधिष्टर, भीम अने अर्जुन तो तपस्या करीने मोक्षे गया. अनेमाद्रीना मोटा पुत्र नकुल अने सहदेव सर्वार्थ सिद्धिए गया ॥१५॥ अने दुर्योधनादिक पण जिनशासननी सेवा करीने पोतपोताना कर्मानुसार स्वर्गादिकमां गया ॥ ५६ ॥ हे मित्र! पुराणोनो अभिप्रायतो आवो छे, अने व्यासजीए कईनुं कईज कह्यं छे. ते नितीन छे के मिथ्या स्वयी आकुलीत छे चित्त जेर्नु एवा पुरुषोनी वाणी सत्य केम होय? ॥५७ ॥ महाभारतमां अतिशय निंदानी कारणरूप पूर्वापर विरुध्ध कथाने जोई व्यासजीए पोताना मनमा ए प्रमाणे विचार कर्यो के-॥ ५८ ॥ जो आ लोकमां निरर्थक कार्य पण थई जाय छे तो निश्चय करीने खोटा अवाळु मारु बनावेलं आ असंबद्ध शास्त्र ( महाभारत ) पण प्रसिध्ध थई जशे ॥ ५९ ॥ आ प्रमाणे विचार करता करतां व्यासजीए गंगाना किनारा उपर पोतानु ताम्रपात्र वालूरतमां दाटीने तेना उपर तीनो ढगलो बनावीने स्नानार्थ गंगाजीमा प्रवेश कर्यो ।। ६० ॥ व्यासजीने रेते नो ढगलो करीने स्नान करवाने जता जोई मूर्ख लोकोए " ए प्रमाणे रेतीनो ढगलो करी गालामार्थ जवामां कोई पण विशेष पुण्य (धर्म) यशे" एबुं समजीने व्यासजनी देखादेखीथी सघळा माणसो रेतीनो ढग बनावी गंगालान करवा लाग्या ॥ ६१ ।। व्यासजी स्नान करीने पोताना ताम्रपात्रने जोवाने माटे आव्या, तो असंख्यात रेतीना ढगलाओमां ते स्थाननो पण पत्तो लगाडी शक्यो नहि ॥ ६२ ॥आ प्रमाणे रेतीना ढगथी गंगा किनाराने भरेलो कोई सवळा लोकोने मूह समीने आ श्लोक बोल्या के-६३ ॥
SR No.022328
Book TitleDharmpariksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorIshwarlal Karsandas Kapadia
PublisherMulchand Karsandas Kapadia
Publication Year1910
Total Pages244
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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