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________________ वखते गळीने पोताना पेटमा राखी लीधी. पोताना प्रिय पुरुषने स्त्रीए हृदयमा राखी लीधो तो एमां कई पण आश्चर्य नथी ॥ ८९॥ ते पछी यमराजे पोतानुं नित्यकर्म करीने आ वातने कई पण न जाणीने छायाने पोताना पेटमा राखी दीधी ते उचितज छे-के स्त्राआन प्रपंच विद्वानोने पण अजाण्युं छे ॥९० ॥ त्यां अग्निदेव तो छाया अने यमराजना पेटमां अटकी गया, अहिंआं अग्नि वगर संसार मात्रमा रसोई बनाववी, होम करखो, दावो बाळवो वगेरे सघळां काम बंध थई गयां, त्यारे मनुष्य अने देव सघळा अग्नि विना पोतानो नाश समजीने घभराई गया ॥९१ ॥ पछी लाचार थईने इन्द्रे वायुदेवने कडं के हे सखे ! तुं सघळे फरेछे अने तारी सबळा देवाने त्यां गति छे. अग्निदेवे क्यां छे, ते तमे शाधीने पत्तो लगावो ॥ ९२ ॥ वायुए कह्यु के हे देव ! में अग्निदेवने सघळे शोध्या, परंतु कोईपण जग्याए पत्तो लाग्यो नहि. हा, एक जग्याए में शोध्या नथी, माटे हे देव! ते जग्याए पण शोधुंछु ॥ ९३ ॥ आ प्रमाणे कहीने वायुदेवे उत्तमोत्तम भोजन बनावाने सघळा देवोने आमंत्रण कयु, ज्यारे सवळा देव आवी रह्या त्यारे तेणे दरेक देवने माटे तो एक एक आसन आप्युं, परंतु यमराजने माटे त्रण आसन आप्यां ॥ ९४ ॥ ज्यारे सवळा देव बेसी गया, त्यारे अपरिमाण छे गति जेनी एवा वायुदेवे दरेक देवने तो एक एक भाग पीरस्यो, परंतु यमराजने त्रण भाग भोजन पारस्युं, ते ठीकन छ, प्रपंच कर्या वगर कोईनुं पण कार्य सिद्ध थतुं नथी ॥९५ ॥ इतिश्री अमितगति आचार्य कृत 'धर्म परिक्षा ' संस्कृत प्रयंनी गुजराती भाषाटिकामां अगीआरमुं प्रकरणं पूर्ण थयु ॥ ११ ॥
SR No.022328
Book TitleDharmpariksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorIshwarlal Karsandas Kapadia
PublisherMulchand Karsandas Kapadia
Publication Year1910
Total Pages244
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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