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________________ वादशाळामाथी नाकळीने गयो ॥ ४९-५० ॥ ते पछी तेज बागमां जईने पोताना मित्र पवनवेगने कहेवा लाग्यो के, हे मित्र ! तें आ लौकिक सामान्य देवने विचार पूर्वक सांभळ्या ? हवे हुँ तारा संशयरुपी अंधकारने नाश करवावाळा सूर्यना समान थोडं अनुक्रमनुं स्वरुप बीजं पण कहुं छु ते सांभळ ॥ ५१-५२ ॥ हे मित्र ! आ भारतवर्षमा छ रुतुनी माफक पोताना जुदा जुदा स्वभावोने लइने छ काल अनुक्रमेथया करे छे ।।१३।। एमाथी चोथा कालमां चन्द्रमा समान उज्वल कीर्तिना धारक जगतमान्य ६३ शलाका पुरुष ( उत्तम पुरुप ) उत्पन्न थाय छे ।। ५४ ॥ एमां चोवीश तर्थिकर ( अरहंत ) बार चक्रवर्ति, नव बलभद्र ( राम ), नव नारायण अने नव प्रतिनारायण ( बलभद्र अने नारायणना शत्रु ) थाय छे ॥ ५५ ॥ आ समये ते सघळा पृथ्वीमंडलना आभरणरुप उत्पन्न थइ थईने व्यतीत थई गया, केमके जगतमां एवो कोईपण पदार्थ नथी के जेने काल भक्षण न करे ॥ ५६ ॥ नारायणोमां छेल्ला नारायण वसुदेवना पुत्र श्रीकृष्ण थया, तेने आ ब्राह्मण भक्तोए निरंजन परमोष्ठ मानी लीया छे ॥ ५७ ॥ अने कहे छे के जे पुरुष सर्वव्यापी, निष्कल घडपणमरणना नाशक, अछेद्य, अव्यय, देव विष्णुरुप मूर्तिनें ध्यान करे छे, ते दुःख पामता नथी । ५८ ॥ तथा जे विष्णुने मीन, कूर्म, शकर, नरसिंह, वामन, राम, फरसराम, कृष्ण, बुद्ध अने कल्कि आ दश अवताररुप कहीने निष्कलंक एटले शरिररहित पण कह्या अने दश अवतारना धारी पण बताव्या, माटे आ प्रकारे पूर्वापर विरोधवाला देवने विद्वान माणस कदापि साचो देव कही शकता नथी
SR No.022328
Book TitleDharmpariksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorIshwarlal Karsandas Kapadia
PublisherMulchand Karsandas Kapadia
Publication Year1910
Total Pages244
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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