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________________ ठंडीथी पीडीत माणस अग्निनी सेवा करे छे, ते प्रमाणे आ मुनिराजनी सेवा करवायी सगळा प्राणिओने पीडित करवावाळा तथा सम्यग्दर्शन चा. रेत्र नष्ट करवावाळा पापाथी छूटी जाय छे ॥ ८१ ॥ अने जेणे इन्द्र, ब्रह्मा, विष्णु, महेश वगेरेने पण पोतानां बाणोथी हणीने जीती लीवा अने सेंकडो दुःख दीघां, एवा कामने पण जेमणे सहजमां जीती लीघो ॥ ८२ ॥ अने जे मुनिराजे स्वर्गलोकने जीतवावाळा कामदेवनो पण कामदेवनो पण नाश करी दीधो ते अमने तो तरत मारशे आ प्रमाणे जाणे भयभित थइनेज बलवान क्रोधादिक कषायोए आ महा पराक्रमी मुनिराजनी सेवा करी नहि ! ||८३ ॥ ते मुनिराज तपनी तो सेवा करे छे, परंतु तम एटले मिथ्यात्वनी नाही, तेओ सदा धर्मकथा कहे छे, परंतु निंदनीक विकथा कहता नथी. तेओ अनेक प्रकारना दोषोनो नाश करे छे, पण गुणोनो नाही, तेओ निंद्रानो त्याग करे छे, परंतु जिनवाणिनो त्याग कदी करता नथी ॥ ८४ ॥ ते मुनिराज सघळा माणसोने धर्मोपदेश करीने तरतज प्रतिबोधित धर्मात्मा करीने जगतना सघळा जीव अजीव पदार्थोंने जाणवाबाळा अने जिनेन्द्र भगवानना जेवा इन्द्रनरेंद्र वडे बन्दनीय छे ॥ ८५ ॥ ते मुनिराज संघळी इन्द्रिओना फेलावाने रोकीने पण सघळा प्रकारना समूहनुं अवलोकन करे छे, तथा त्रस स्थावर जीवोनी रक्षा करवावाळा होइने पण विषयोनुं मर्दन करवावाळा छे ॥ ८६ ॥ गुणोथी नडेला, संसाररूपी समुद्रने तारवावाळा ते मुनिश्वरना चरणरुपी कमळोने पेला चार मूर्खो जमीन उपर मस्तक मूकीने नमस्कार करवा लाग्या ॥ ८७ ॥ निर्दोष छे
SR No.022328
Book TitleDharmpariksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorIshwarlal Karsandas Kapadia
PublisherMulchand Karsandas Kapadia
Publication Year1910
Total Pages244
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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