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________________ समिति तथा गुप्ति का कथन गाथा इरिया भासेसणादाणे, उच्चारे समिइसु अ । मणगुत्ती वयगुत्ती, कायगुत्ती तहेव य ॥२६॥ अन्वय समिइसु इरिया, भासा, एसणा, आदाणे अ उच्चारे । तह एव मणगुत्ती, वयगुत्ती य कायगुत्ती ॥२६॥ संस्कृतपदानुवाद ईर्याभाषैषणादानान्युत्सर्गः समितिषु न । मनोगुप्तिर्वचो गुप्ति कायगुप्तिस्तथैव च ॥२६॥ __ शब्दार्थ इरिया - ईर्यासमिति अ"- और . भासा - भाषासमिति मणगुत्ती - मनोगुप्ति एसणा - एषणासमिति वयगुत्ती - वचनगुप्ति आदाणे - आदानसमिति कायगुत्ती - कायगुप्ति उच्चारे - उच्चार समिति तहेव - उसी प्रकार समिइसु - इन समितियों में | य - एवं भावार्थ समितिओं में ईर्या समिति, भाषा समिति, एषणा समिति, आदान समिति, उच्चार समिति तथा मनोगुप्ति, वचनगुप्ति, कायगुप्ति (ये अष्टप्रवचनमाता) हैं ॥२६॥ विशेष विवेचन समिति - आवश्यक कार्य के लिये सम्यक् उपयोगपूर्वक जो प्रवृत्ति की जाती है, उसे समिति कहते है। समिति में सत्क्रिया का प्रवर्तन मुख्य है । १. ईर्यासमिति : ईर्या -मार्ग में उपयोग, जयणापूर्वक चलना ईर्यासमिति है। ज्ञान-दर्शन तथा चारित्र के निमित्त मार्ग में युग मात्र (३१/ हाथ) भूमि को एकाग्र चित्त से देखते हुए निरवद्य स्थान में सावधानी पूर्वक गमनागमन करना श्री नवतत्त्व प्रकरण
SR No.022327
Book TitleNavtattva Prakaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNilanjanashreeji
PublisherRatanmalashree Prakashan
Publication Year
Total Pages400
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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