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________________ - समुदाण - सामुदानिकी दोस - द्वैषिकी पिज्ज - प्रेमिकी इरियावहिया - ईर्यापथिकी भावार्थ कायिकी, अधिकरणिकी, प्राद्वेषिकी, पारितापनिकी, प्राणातिपातिकी, आरंभिकी, पारिग्रहिकी और मायाप्रत्ययिकी क्रिया ॥२२॥ मिथ्यादर्शनप्रत्ययिकी, अप्रत्याख्यानिकी, दृष्टिकी, पृष्टिकी, प्रातित्यकी, सामन्तोपनिपातिकी, नैशस्त्रिकी तथा स्वाहस्तिकी क्रिया ॥२३॥ आज्ञापनिकी, वैदारणिकी, अणाभोगिकी, अनवकांक्षप्रत्ययिकी, अन्य प्रायोगिकी, सामुदानिकी, प्रेमिकी, द्वैषिकी और ईर्यापथिकी, ये २५ क्रियाएँ है ॥२४॥ विशेष विवेचन प्रस्तुत तीन गाथाओं में २५ क्रियाओं का वर्णन है, जिनसे कर्मों का आश्रव होता है। आत्मा जिस व्यापार के द्वारा शुभाशुभ कर्म को ग्रहण करती हैं, उसे क्रिया कहते है । ये २५ क्रियाएँ निम्नलिखित से हैं - . १. कायिकी क्रिया : अविरति तथा अयतनापूर्वक शरीर के हलन-चलन से होने वाली क्रिया कायिकी है। २. अधिकरणिकी क्रिया - "जिसके द्वारा आत्मा नरक का अधिकारी हो, वह अधिकरण कहलाता है। अधिकरण अर्थात् तलवार, भाला, छूरी आदि उपघातक या हिंसक शस्त्र बनाना या झुका संग्रह करना अधिकरणिकी क्रिया कहलाती है। । ३. प्राद्वेषिकी क्रिया : जीव या' अजीव पर द्वेष करने से लगनेवाली क्रिया प्राद्वेषिकी है। ४. पारितापनिकी क्रिया : स्वयं को अथवा दूसरों को ताडना-तर्जना द्वारा संताप उत्पन्न करना पारितापनिकी क्रिया है । ५. प्राणातिपातिकी क्रिया : स्वयं के अथवा अन्य के प्राणों का अतिपात (विनाश) करना प्राणातिपातिकी क्रिया है। ____६. आरंभिकी क्रिया : खेती करना, मकान बनवाना, कुँआ खुदवाना श्री नवतत्त्व प्रकरण - - - -
SR No.022327
Book TitleNavtattva Prakaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNilanjanashreeji
PublisherRatanmalashree Prakashan
Publication Year
Total Pages400
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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