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________________ शब्दार्थ इग - एकेन्द्रिय हुंति - होते है बि - बेइन्द्रिय पावस्स - पाप के (भेद) ति - तेइन्द्रिय अपसत्थं - अप्रशस्त (अशुभ) चउ - चतुरिन्द्रिय वण्णचउ - वर्णचतुष्क जाइओ - ये जातियाँ अपढम - अप्रथम (प्रथम को छोडकर) कुखगइ - अशुभ विहायोगति | संघयण - संहनन उवघाय - उपघात संठाणा - संस्थान शब्दार्थ थावर - स्थावर दुभगाणि - दुर्भग सुहुम - सूक्ष्म दुस्सर - दुःस्वर अपज्जं - अपर्याप्त अणाइज्ज - अनादेय साहारणं - साधारण अजसं - अपयश अथिरं - अस्थिर थावरदसगं - स्थावर दशक असुभ - अशुभ | विवज्जत्थं - (त्रस दशक से) विपरीत अर्थ वाला है। .. भावार्थ ज्ञानावरणीय (की ५) और अन्तराय (की ५) की मिलाकर कुल दस, दूसरे ( दर्शनावरणीय) की नौ, नीच गोत्र, अशाता वेदनीय, मिथ्यात्व मोहनीय, स्थावर दशक, नरक त्रिक, पच्चीस कषाय तथा तिर्यञ्च द्विक (ये पापप्रकृतियाँ हैं),॥१८॥ . एकेन्द्रिय, द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय चतुरिन्द्रिय ये चार जातियाँ, अशुभ विहायोगति, उपघात, अप्रशस्तवर्णचतुष्क, प्रथम को छोडकर (पांच) संहनन तथा (पांच) संस्थान, ये पाप तत्त्व के ८२ भेद हैं ॥१९॥ स्थावर, सूक्ष्म, अपर्याप्त, साधारण, अस्थिर, अशुभ, दुर्भग, दुःस्वर, अनादेय, अपयश, ये स्थावरदशक (बस दशक से) विपरीत अर्थ वाले हैं ॥२०॥ विशेष विवेचन प्रस्तुत गाथा त्रिक में पापतत्त्व के ८२ भेद तथा स्थावर दशक का वर्णन है। पाप : पाप अर्थात् अशुभ कर्म । जो आत्मा को मलिन करें, जिसकी अशुभ प्रकृति हो, जो बांधते समय तो सुखकारी हो किंतु भोगते समय दुखकारी श्री नवतत्त्व प्रकरण ७५
SR No.022327
Book TitleNavtattva Prakaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNilanjanashreeji
PublisherRatanmalashree Prakashan
Publication Year
Total Pages400
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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