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________________ गाथा परिणामी जीव मुत्तं, सपएसा एग खित्त किरिआ य । णिच्चं कारण कत्ता, सव्वगय इयर अप्पवेसे ॥१४॥ अन्वय परिणामी जीव मुत्तं, सपएसा एग खित्त किरिया य णिच्चं कारण कत्ता सव्वगय इयर अप्पवेसे ||१४|| संस्कृत पदानुवाद परिणामी जीवो मूर्त्तः, सप्रदेश एकः क्षेत्रं क्रिया च । नित्यः कारणं कर्त्ता, सर्वगतमितर अप्रवेशः ॥ १४॥ शब्दार्थ परिणामी - परिणामी जीव - जीव मुत्तं - मूर्त रूपी सपएसा - सप्रदेशी छह द्रव्य विचारणा एग - एक खित्त क्षेत्र किरिया - क्रियावान् - श्री नवतत्त्व प्रकरण #ive णिच्चं - नित्य कारण कारण कत्ता कर्त्ता सव्वगय - सर्वगत, सर्वव्यापी इयर - इतर ( प्रतिपक्ष भेद सहित ) अप्पवेसे अप्रवेशी य - - - - और भावार्थ (छह द्रव्य में ) परिणामी, जीव, मूर्त्त, सप्रदेशी, एक, क्षेत्र, सक्रिय, नित्य, कारण, कर्त्ता, सर्वव्यापी और भेदसहित प्रतिपक्ष अप्रवेशीपन की विचारणा की जाती है ॥१४॥ ६१
SR No.022327
Book TitleNavtattva Prakaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNilanjanashreeji
PublisherRatanmalashree Prakashan
Publication Year
Total Pages400
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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