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________________ संस्कृत पदानुवाद एका कोटिः सप्तषष्टिलक्षाः सप्तसप्ततिः सहस्त्राश्च । द्वे च शते षोडशाधिके, आवलिका एकस्मिन्मुहूर्ते ॥१२॥ शब्दार्थ एगा कोडि - एक करोड । दोसया - दो सौ सतसट्टि - सडसठ (६७) सोल - सोलह लक्खा - लाख अहिया - अधिक सत्तहत्तरी - सत्तहत्तर (७७) आवलिया - विलिकाएँ सहस्सा - हजार इम - एक य - और मुंहुत्तम्मि - मुहूर्त में भावार्थ एक मुहूर्त में एक करोड, सडसठ लाख, सत्तहत्तर हजार, दो सौ सोलह (१,६७,७७,२१६) से (कुछ) अधिक आवलिकाएँ होती हैं ॥१२॥ प्रस्तुत गाथा में ही अर्थ स्पष्ट है । समय, आवलिका आदि कलाओं (विभागों) के समूह को काल कहते है। काल का अगली गाथा में विस्तार से विवेचन किया गया है। व्यवहार में उपयोगी काल गाथा समयावलि मुहुत्ता, दीहा पक्खा य मास वरिसा य । भणिओ पलिआ सागर, उस्सप्पिणिसप्पिणी कालो ॥१३॥ अन्वय समय आवलि मुहुत्ता दीहा पक्खा मास वरिसा पलिआ सागर उस्सप्पिणी य ओसप्पिणी कालो भणियो ॥१३॥ संस्कृतपदानुवाद समयावलि मुहूर्ता, दिवसाः पक्षाश्च मासा वर्षाणि च । भणितः पल्याः सागराः, उत्सर्पिण्यवसर्पिणी कालः ॥१३॥ - श्री नवतत्त्व प्रकरण
SR No.022327
Book TitleNavtattva Prakaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNilanjanashreeji
PublisherRatanmalashree Prakashan
Publication Year
Total Pages400
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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