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________________ हो, उसे आसन्न भव्य कहते हैं । ११९७) मध्यम भव्य किसे कहते हैं ? उत्तर : वह जीव, जो ३, ५, ७, ९ या कुछ अधिक भवों में मोक्ष प्राप्त करेगा, उसे मध्यम भव्य कहते हैं । ११९८) दुर्भव्य किसे कहते हैं ? उत्तर : वह जीव, जो अनन्तकाल के बाद मोक्ष प्राप्त करेगा, दुर्भव्य कहलाता ११९९) सम्यक्त्व किसे कहते हैं ? उत्तर : दर्शन मोहनीय कर्म के क्षय, उपशम अथवा क्षयोपशम से जिन प्ररुपित तत्त्व पर श्रद्धा रुप जो आत्मा का परिणाम है, उसे सम्यक्त्व कहते हैं। १२००) औपशमिक सम्यक्त्व किसे कहते हैं ? उत्तर : अनन्तानुबंधी कषायचतुष्क तथा सम्यक्त्व मोहनीय, मिश्र मोहनीय, मिथ्यात्व मोहनीय, इन सात कर्म प्रकृतियों की अन्तर्मुहूर्त तक पूर्ण रुप से उपशान्ति होने पर आत्मा में जो विशुद्ध परिणाम उत्पन्न होता है, उसे औपशमिक सम्यक्त्व कहते हैं। १२०१) क्षायोपशमिक सम्यक्त्व किसे कहते हैं ? उत्तर : उपरोक्त सातों कर्म प्रकृतियों में से छह का उपशमन तथा सम्यक्त्व मोहनीय का उदय होकर क्षय हो रहा होता है, उस समय आत्मा के जो परिणाम होते हैं, उसे क्षायोपशमिक सम्यक्त्व कहते हैं । १२०२) क्षायिक सम्यक्त्व किसे कहते हैं ? उत्तर : उपरोक्त सातों कर्म प्रकृतियों का सर्वथा क्षय होने पर आत्मा में जो अत्यन्त विशुद्ध परिणाम उत्पन्न होता है, उसे क्षायिक सम्यक्त्व कहते १२०३) मिश्र सम्यक्त्व किसे कहते हैं ? उत्तर : उपरोक्त सातों प्रकृतियों में से मात्र मिश्र मोहनीय का उदय हो, बाकि छह प्रकृतियाँ उपशान्त हो, उस समय सम्यग्-मिथ्यारुप जो आत्मा का - - - - - - - - - - - - - - - - -- - - श्री नवतत्त्व प्रकरण - - ३६९
SR No.022327
Book TitleNavtattva Prakaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNilanjanashreeji
PublisherRatanmalashree Prakashan
Publication Year
Total Pages400
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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