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________________ उत्तर : अवधि अर्थात् सीमा में रुपी तथा अरुपी पदार्थों का सामान्य ज्ञान होना अवधिदर्शन है। ११८४) केवलदर्शन किसे कहते हैं ? उत्तर : लोकालोक के रुपी तथा अरुपी समस्त पदार्थों का सामान्य अवबोध केवलदर्शन कहलाता है। ११८५) लेश्या किसे कहते हैं ? उत्तर : जिनके द्वारा आत्मा कर्मों से लिप्त होती है, मन के ऐसे शुभाशुभ ___ परिणामों को लेश्या कहते हैं। ११८६) लेश्या के कितने भेद होते हैं ? उत्तर : छह - (१) कृष्णलेश्या, (२) नीललेश्या, (३) कपोतलेश्या, (४) पीतलेश्या, (५) पद्मलेश्या, (६) शुक्ललेश्या । ११८७) कृष्णलेश्या किसे कहते हैं ? उत्तर : काजल के समान कृष्ण और नीम से अनन्तगुण कटु पुद्गलों के सम्बन्ध से आत्मा में जो परिणाम होता है, वह कृष्ण लेश्या है। इस लेश्या वाला जीव क्रूर, हिंसक, असंयमी, तथा रौद्र परिणामवाला होता ११८८) नील लेश्या किसे कहते हैं ? उत्तर : नीलम के समान नीले तथा सौंठ से अनन्तगुण तीक्ष्ण पुद्गलों के सम्बन्ध से आत्मा में जो परिणाम होता है, वह नीललेश्या है । इस लेश्यावाला जीव कपटी, निर्लज्ज, स्वाद लोलुपी, पौद्गलिक सुख में रत रहनेवाला होता है। ११८९) कापोतलेश्या किसे कहते हैं ? उत्तर : कबूतर के गले के समान वर्णवाले और कच्चे आम के रस से अनन्तगुण कसैले पुद्गलों के सम्बन्ध से आत्मा में जो परिणाम होता है, वह कापोत लेश्या है । कापोत लेश्यावाला जीव अभिमानी, जड, वक्र तथा कर्कशभाषी होता है। ११९०) पीतलेश्या किसे कहते हैं ? ३६६ श्री नवतत्त्व प्रकरण
SR No.022327
Book TitleNavtattva Prakaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNilanjanashreeji
PublisherRatanmalashree Prakashan
Publication Year
Total Pages400
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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