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________________ उत्तर : धारण किये हुए अर्थ पर बार बार मनन करना, विचार करना अनुप्रेक्षा ९५९) धर्मकथा किसे कहते हैं ? उत्तर : उपरोक्त चारों प्रकार से शास्त्र का अभ्यास करने पर श्रोताओं को धर्मोपदेश देना धर्मकथा है। ९६०) धर्मकथा के कितने भेद हैं ? उत्तर : चार - (१) आक्षेपणी, (२) विक्षेपणी, (३) संवेगनी, (४) निर्वेदनी । ९६१) आक्षेपणी धर्मकथा किसे कहते हैं ? उत्तर : संसार तथा विषयादि की ओर बढ़ते हुए श्रोताओं के मोह को हटाकर __धर्म में लगानेवाली कथा आक्षेपणी है। ९६२) विक्षेपणी धर्मकथा किसे कहते हैं ? उत्तर : श्रोता को कुमार्ग से हटाकर सन्मार्ग पर लगाने वाली कथा विक्षेपणी ९६३) संवेगनी धर्मकथा किसे कहते हैं ? उत्तर : श्रोता के संसार की ओर बढे हुए राग को मोडकर धर्म की ओर लगाना, धर्म में प्रेम तथा रुचि जागृत करना, मोक्ष की अभिलाषा पैदा करना, संवेगनी धर्मकथा है। ९६४) निर्वेदनी धर्मकथा किसे कहते हैं ? उत्तर : इहलोक भय, परलोक भय, नरकादि के भयंकर त्रास आदि अनिष्ट परिणाम बताकर संसार से विरक्ति पैदा कराना, निर्वेदनी कथा है । ९६५) ध्यान किसे कहते हैं ? उत्तर: एक लक्ष्य पर चित्त को एकाग्र करना ध्यान है । चार प्रकार के ध्यान का विवेचन ९६६) ध्यान का वर्णन कौन-से आगम में हैं ? उत्तर : भगवतीसूत्र शतक-२५, उद्देशक ७, स्थानांग सूत्र-स्थान ४, समवायांग - सूत्र समवाय-४ तथा औपपातिक सूत्र में ध्यान का वर्णन है। श्री नवतत्त्व प्रकरण ३२७
SR No.022327
Book TitleNavtattva Prakaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNilanjanashreeji
PublisherRatanmalashree Prakashan
Publication Year
Total Pages400
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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