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________________ अन्वय एसि कमेण चउदस चउदस बायालीसा बासी बायाला सत्तावन्नं बारस चउ अ नव भेया हुंति ॥२॥ संस्कृतपदानुवाद चतुर्दश चतुर्दश द्वि चत्वारिंशद्, द्वयशीतिश्च भवन्ति द्विचत्वारिंशत् । सप्तपञ्चाशद् द्वादश, चत्वारो नव भेदाः क्रमेणैषाम् ॥२॥ शब्दार्थ चउदस - चौदह सत्तावनं - सत्तावन चउदस - चौदह बारस'- बारह , बायालीसा - बयालीस च3 - चार बासी - बयासी ... नव - नौ । .. अ - और भैया - भेद ..... हुति - होते हैं कमेण - क्रमशः .... बायाला - बयाली एसि - इन नौ तत्त्वों के भावार्थ ..इन नौ तत्त्वों के अनुक्रम से १४-१४-४२-८२-४२-५७-१२-४- ' ९ भेद होते हैं । अर्थात् जीव तत्त्व के १४, अजीव तत्त्व के १४, पुण्य तत्त्व के ४२, पाप तत्त्व के ८२, आश्रव तत्त्व के ४२, संवर तत्त्व के ५७, निर्जरा तत्त्व के १२, बंध तत्त्व के ४ और मोक्ष तत्त्व के ९ भेद होते हैं ॥२॥ - विशेष विवेचन . . नवतत्त्वों के सर्वभेदों की संख्या २७६ होती है। इसमें ९२ भेद जीव के तथा १८४ भेद अजीव के होते हैं। इसी प्रकार २७६ भेदों में से ८८ भेद अरुपी तथा १८८ भेद रुपी है। अरुपी भेद : धर्मास्तिकाय, अधर्मास्तिकाय और आकाशास्तिकाय, इन तीनों के स्कंध, देश, प्रदेश ये तीन तीन भेद गिनने से ९ भेद तथा अद्धाकाल मिलाकर ये अजीव के १० अरुपी भेद है तथा संवर के ५७, निर्जरा के १२ तथा मोक्ष के ९ भेद गिनने पर अरूपी द्रव्य के ८८ भेद होते हैं। ३० श्री नवतत्त्व प्रकरण
SR No.022327
Book TitleNavtattva Prakaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNilanjanashreeji
PublisherRatanmalashree Prakashan
Publication Year
Total Pages400
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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