SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 325
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ कहलाता है। ९३४) विनय तप के मुख्य कितने भेद हैं ? उत्तर : विनय तप के ७ भेद हैं - (१) ज्ञान विनय, (२) दर्शन विनय, (३) चारित्र विनय, (४) मन विनय, (५) वचन विनय, (६) काय विनय उपचार विनय । ९३५) विनय तप के कुल कितने भेद हैं ? उत्तर : कुल १३४ भेद हैं - (१) ज्ञानविनय - ५, (२) दर्शनविनय - ५५, (३) चारित्रविनय-५, (४) योगविनय - मनविनय-२४, वचनविनय २४, कायविनय-१४, (५) उपचार विनय-७ । ९३६) ज्ञानविनय किसे कहते हैं ? उत्तर : ज्ञान तथा ज्ञानी का विनय, बहुमान तथा वैयावृत्य करना ज्ञान विनय है। ९३७ ) ज्ञान विनय के कितने भेद हैं ? उत्तर : पांच - (१) भक्ति विनय : ज्ञान व ज्ञानी की सेवा - वेयावच्च करना। (२) बहुमान विनय : ज्ञान व ज्ञानी के प्रति आंतरिक प्रीति धारण करना। (३) भावना विनय : ज्ञान द्वारा ज्ञेय पदार्थों का चिंतन करना । (४) विधि ग्रहण विनय : विधिपूर्वक शास्त्र पढ़ना । (५) अभ्यास विनय : ज्ञान की पुनरावृत्ति करना । ९३८) दर्शन विनय के कितने भेद हैं ? उत्तर : दो - (१) शुश्रूषा विनय (२) अनाशातना विनय । ९३९) शुश्रूषा विनय किसे कहते हैं ? उत्तर : देव-गुरु की उचित सेवा शुश्रूषा करना शुश्रूषा विनय है । इसके १० भेद हैं - (१) अब्भुट्ठाणे - गुरुजनों के आने पर खडे होना। (२) आसणाभिग्गहे - बैठने की जहाँ इच्छा हो, वहाँ आसन बिछाना। (३) आसणप्पदाणे - आसन प्रदान करना । (४) अंजलिपग्गहे - दो हाथ जोडना । ------------------------ श्री नवतत्त्व प्रकरण ३२२
SR No.022327
Book TitleNavtattva Prakaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNilanjanashreeji
PublisherRatanmalashree Prakashan
Publication Year
Total Pages400
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy