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________________ हो, ऐसे आहार का त्याग करना । (३) आयंबिल - लूखी रोटी, उबला धान्य तथा भूने चने आदि का आहार करना । (४) आयाम सिक्थभोजी - चावल आदि के पानी (ओसामन) में पड़े हुए धान्य आदि का आहार करना (५) अरसाहार – नमक, मिर्च आदि मसालों के बिना रस रहित आहार करना । (६) विरसाहार - जिनका रस चला गया हो, ऐसे पुराने धान्य या भात आदि का आहार करना । (७) अन्ताहार - जघन्य अर्थात् हलका, जिसे गरीब लोग खाते हैं, ऐसा आहार लेना । (८) प्रान्ताहार - बचा हुआ आहार लेना । (९) रुक्षाहार - रूखा-सूखा, जीभ को अप्रिय लगनेवाला आहार करना । ९१६ ) विगई किसे कहते हैं ? उत्तर : विगई अर्थात् विकृति । जिससे मन में विकार बढे, उस आहार को विगई कहते हैं । ९१७) विगई के कितने भेद हैं ? उत्तर : दो - (१) लघु विगई, (२) महा विगई । ९१८ ) लघु विगई से क्या तात्पर्य है ? उत्तर: दूध-दही, घी-तेल, गुड-कडाई ( तली हुई वस्तु) इन छह को लघु विगई कहते हैं । इनका यथायोग्य त्याग करना चाहिए । ३१८ ९१९ ) महाविगई किसे कहते हैं ? उत्तर : जो सर्वथा त्याज्य हो, उसे महाविगई कहते हैं। मदिरा, माँस, शहद, मक्खन, ये चार महाविगई है । ९२०) कायक्लेश किसे कहते हैं ? उत्तर : काया को क्लेश / कष्ट पहुँचाना कायक्लेश है। शरीर से कठोर साधना करना, वीरासन, पद्मासन आदि में बैठना, लोच करना, कायक्लेश तप श्री नवतत्त्व प्रकरण
SR No.022327
Book TitleNavtattva Prakaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNilanjanashreeji
PublisherRatanmalashree Prakashan
Publication Year
Total Pages400
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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