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________________ उत्तर : भण्ड-उपकरण, आहार-पानी आदि का शास्त्र में जो परिमाण बताया गया है, उसमें भी कमी करना तथा अति सरस, स्वादिष्ट व पौष्टिक आहार का त्याग करना, द्रव्य ऊणोदरी है । ९०२) द्रव्य ऊणोदरी के कितने भेद हैं ? उत्तर : तीन - (१) आहार (भक्तपान) ऊणोदरी, (२) उपधि ऊणोदरी, (३) _शय्या ऊणोदरी। ९०३) आहार ऊणोदरी किसे कहते हैं ? उत्तर : अल्प आहार करना आहार ऊणोदरी है। ९०४) भक्तपान ऊणोदरी के कितने भेद हैं ? उत्तर : पांच - (१) एक कवल से आठ कवल खाने पर अल्पाहार ऊणोदरी (२) आठ से बारह कवल तक खाने पर अपार्द्ध ऊणोदरी है । (३) तेरह से सोलह कवल तक खाने पर अर्द्ध ऊणोदरी है । (४) सतरह से चौबीस कवल तक खाने पर पौन ऊणोदरी है। (५) पच्चीस से एकतीस कवल तक खाने पर किंचित् ऊणोदरी है। तथा पूरे बत्तीस कवल परिमाण आहार करना प्रमाणोपेत आहार कहलाता ९०५) उपधि ऊणोदरी किसे कहते हैं ? उत्तर : सीमित वस्त्र, पात्र रखना उपधि ऊणोदरी है । ९०६) शय्या ऊणोदरी किसे कहते हैं ? उत्तर : शय्या संकोचकरण अर्थात् शयन-आसन-गमन आदि कम करना शय्या ऊणोदरी है। ९०७) भाव ऊणोदरी किसे कहते हैं ? उत्तर : क्रोधादि कषायों में कमी करना, अल्प बोलना, भाव ऊणोदरी है। ९०८) भाव ऊणोदरी के कितने भेद हैं ? उत्तर : छह - (१) अल्प क्रोध, (२) अल्प मान, (३) अल्प माया, (४) अल्प ... लोभ, (५) अल्प शब्द, (६) अल्प संज्ञा । श्री नवतत्त्व प्रकरण
SR No.022327
Book TitleNavtattva Prakaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNilanjanashreeji
PublisherRatanmalashree Prakashan
Publication Year
Total Pages400
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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