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________________ से शाश्वत तथा पर्याय से अशाश्वत है । इस प्रकार षड्द्रव्यात्मक लोक की विचारणा लोकस्वभाव भावना है । ८३४ ) बोधि दुर्लभ भावना किसे कहते हैं ? उत्तर : अनादिकाल से जीव इस संसारचक्र में परिभ्रमण कर रहा है । इसने आर्य देश, मनुष्यभव, उत्तमकुल, दीर्घायु, स्वस्थ इन्द्रियाँ एवं ऐश्वर्य आदि वस्तुएँ प्राप्त की परंतु बोधि (सम्यक्त्व) को प्राप्त नहीं किया । ऋद्धिसंपन्न पदवियाँ भी प्राप्त हुई पर सम्यग्दर्शन प्राप्त न हुआ । इस प्रकार इस संसार में सबकुछ प्राप्त करना सरल है पर सम्यक्त्व बोधि को प्राप्त करना महादुर्लभ है, ऐसी विचारणा बोधिदुर्लभ भावना है । ८३५) धर्मसाधक अरिहंत दुर्लभ (धर्म स्वाख्यात) भावना किसे कहते हैं ? उत्तर : इस संसार में प्रत्येक वस्तु की प्राप्ति सुलभ है परंतु धर्म के साधकस्थापक- उपदेशक अरिहंत प्रभु की प्राप्ति महादुर्लभ है। ऋद्धि-समृद्धि भवांतर में भी प्राप्त हो सकती है परंतु मोक्ष के साधनभूत श्रुत चारित्र रुप धर्म के संस्थापक अरिहंत की प्राप्ति अत्यंत दुष्कर है । ऐसा चिन्तन करना धर्मसाधक अरिहंत दुर्लभ भावना है । ८३६ ) किसे कौन सी भावना भाते हुए किसे केवलज्ञान हुआ ? उत्तर : (१) अनित्यभावना भाते हुए भरत चक्रवर्ती को । (२) अशरण भावना भाते हुए - अनाथी मुनि को । (३) संसार भावना भाते हुए - जाली कुमार को । (४) एकत्व भावना भाते हुए - नमि राजर्षि को । (५) अन्यत्व भावना भाते हुए - मृगापुत्र को । (६) अशुचि भावना भाते हुए - सनत्कुमार चक्रवर्ती को । (७) आश्रव भावना भाते हुए - समुद्रपाल मुनि को । (८) संवर भावना भाते हु (९) निर्जरा भावना भाते हुए (१०) लोकस्वभाव भावना भाते (११) बोधिदुर्लभ भावना भाते हुए - ऋषभदेव के ९८ पुत्रों को । हुए ३०५ श्री नवतत्त्व प्रकरण हरिकेशी मुनि को । अर्जुनमाली को । - - शिव राजर्षि को ।
SR No.022327
Book TitleNavtattva Prakaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNilanjanashreeji
PublisherRatanmalashree Prakashan
Publication Year
Total Pages400
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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