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________________ दोनों होते हैं। ८१५) संयम धर्म किसे कहते हैं ? उत्तर : हिंसादि अशुभ प्रवृत्तियों से निवृत्त होकर सं-सम्यक् प्रकार से, यम पंच महाव्रतों या अणुव्रतों का पालन करना, संयम धर्म है । मुनि का संयम धर्म ५ महाव्रत, ५ इन्द्रिय निग्रह, चार कषाय जय तथा मनवचन-काया के अशुभ व्यापार रुप तीन दंड की निवृत्ति, इस प्रकार १७ प्रकार का है। ८१६) सत्य धर्म किसे कहते हैं ? उत्तर : सत्य, हित, मित, निर्दोष, मधुर वचन बोलना सत्यधर्म है। ८१७) शौचधर्म किसे कहते हैं ? उत्तर : शौच अर्थात् पवित्रता । मन, वचन, काया तथा आत्मा की पवित्रता । मुनिराज बाह्य उपाधि रहित होने से मन से पवित्र होते है। अष्टप्रवचन माता का सम्यक्पालन करने से, सत्यवचन बोलने से वचन से पवित्र होते है। आभ्यंतर तथा बाह्यतप करने से शारीरिक मल जल जाने से काया से पवित्र होते हैं । राग-द्वेष के त्याग का लक्ष्य होने से आत्मा से भी पवित्र होते हैं। इस प्रकार द्रव्य तथा भाव से पवित्र रहना शौचधर्म ८१८) आकिंचन्य धर्म किसे कहते हैं ? उत्तर : अ अर्थात् नहीं, किंचन - कोई भी। किसी भी प्रकार का परिग्रह या ममत्व न रखना, अकिंचन धर्म है । ८१९) ब्रह्मचर्य धर्म किसे कहते हैं ? उत्तर : नववाड सहित मन, वचन, काया से पूर्ण ब्रह्मचर्य का पालन करना ब्रह्मचर्य धर्म है। ८२०) ब्रह्मचर्य की नववाड कौनसी है ? उत्तर : वाड से जैसे क्षेत्र का रक्षण होता है, उसी प्रकार नववाड से ब्रह्मचर्य का रक्षण होता है । उसके नौ प्रकार है - (१) संसक्त वसतित्याग - जहाँ पर स्त्री, पशु व नपुंसक रहते हो, ऐसे ------------------------ श्री नवतत्त्व प्रकरण ३०१
SR No.022327
Book TitleNavtattva Prakaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNilanjanashreeji
PublisherRatanmalashree Prakashan
Publication Year
Total Pages400
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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