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________________ उत्तर : किस कर्म के उदय से | किस गणस्थान में किस परीषह का उदय ज्ञानावरणीय के १ से १२ तक प्रज्ञा परीषह-१ क्षयोपशम से ज्ञानावरणीय कर्म १ से १२ तक अज्ञान परीषह-१ के उदय से अशातावेदनीय कर्म | १ से १३ तक क्षुधा-पिपासा, शीत, के उदय से उष्ण, दंश, चर्या, शय्या, मल, वध, रोग, तृणस्पर्श, - ११ दर्शन मोहनीय कर्म | १ से ९ तक सम्यक्त्व परीषह-१ के उदय से चारित्र मोहनीय १ से ९ तक अचेल, अरति, स्त्री, कर्म के उदय से निषद्या, शय्या, आक्रोश, याचना, सत्कार, - ७ लाभांतराय कर्म | १ से १२ तक अलाभ परीषह-१ के उदय से दस प्रकार के यति धर्मों का विवेचन ८०७) यतिधर्म किसे कहते हैं ? उत्तर : यति अर्थात् साधु । साधु के द्वारा पालन किया जानेवाला धर्म यतिधर्म है अथवा मोक्ष मार्ग में जो यत्न करे, वह यति है । उसका धर्म यति धर्म है। ८०८) यति धर्म के कितने भेद हैं ? उत्तर : दस – (१) क्षमा, (२) मार्दव, (३) आर्जव, (४) मुक्ति, (५) तप, (६) संयम, (७) सत्य, (८) शौच, (९) आकिंचन्य, (१०) ब्रह्मचर्य । ८०९) क्षमाधर्म से क्या तात्पर्य हैं ? उत्तर : प्राणीमात्र के प्रति मैत्री भाव का सम्बन्ध रखते हुए किसी पर क्रोध श्री नवतत्त्व प्रकरण २९९
SR No.022327
Book TitleNavtattva Prakaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNilanjanashreeji
PublisherRatanmalashree Prakashan
Publication Year
Total Pages400
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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