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________________ प्रकार का द्वेष भाव न लाकर सहजतापूर्वक स्वीकार कर लेना, शय्या परीषह है। ७९०) आक्रोश परीषह किसे कहते हैं ? उत्तर : कोई अज्ञानी गाली दे, कटुवचन कहे, तिरस्कार या अपमान करें तब भी उससे द्वेष न करना, आक्रोश परीषह है। ७९१) वध परीषह किसे कहते हैं ? उत्तर : कोई अज्ञानी पुरुष साधु को डंडे से, लाठी या चाबुक से मारे-पीटे अथवा हत्या भी कर दे तब भी मन में किञ्चित रोष न लाना, वध परीषह है। ७९२) याचना परीषह किसे कहते हैं ? उत्तर : साधु कोई भी वस्तु मांगे बिना ग्रहण नहीं करता । उसकी प्राप्ति के लिये 'मैं राजा हूँ, धनाढ्य हूँ' इत्यादि मान एवं अहं का त्याग करके घर-घर से भिक्षा मांगकर लाना, याचना करते समय अपमान व लज्जा आदि को जीतना, याचना परीषह है। ७९३) अलाभ परीषह किसे कहते हैं ? उत्तर : मान तथा लज्जा का त्याग कर घर घर भिक्षा मांगने पर भी न मिले तो लाभान्तराय कर्म का उदय जानकर शान्त रहना, दुःखी अथवा उत्तेजित न होना, अलाभ परीषह है । ७९४) रोग परीषह किसे कहते हैं ? उत्तर : शरीर में ज्वर आदि रोग आने पर 'शरीर व्याधियों का घर है' ऐसा मानकर चिकित्सा न कराना, रोगावस्था में भी मन को शान्त तथा स्वस्थ रखना रोग परीषह है। ७९५) तृण स्पर्श परीषह किसे कहते हैं ? उत्तर : दर्भ, घास आदि पर सोने से घास के तृणों के कठोर स्पर्श के चुभने से अथवा खुजली आदि होने पर भी उद्विग्न न होना, तृणस्पर्श परीषह ७९६) मल परीषह किसे कहते हैं ? २९६ श्री नवतत्त्व प्रकरण
SR No.022327
Book TitleNavtattva Prakaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNilanjanashreeji
PublisherRatanmalashree Prakashan
Publication Year
Total Pages400
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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