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________________ आरंभ हैं। ७७२) भाषा समिति और वचनगुप्ति में क्या अन्तर है ? उत्तर : भाषा समिति निरवद्य वचन बोलने रूप एक ही प्रकार की है जबकि वचनगुप्ति सर्वथा वचन निरोध व निरवद्य (निर्दोष) वचन बोलने रुप दो प्रकार की है। ७७३) कायगुप्ति किसे कहते हैं ? उत्तर : खडा होना, उठना, बैठना, सोना आदि कायिक प्रवृत्ति न करना अर्थात् काया को सावध प्रवृत्ति से रोकना तथा निरवद्य प्रवृत्ति में जोडना कायगुप्ति है। ७७४) कायगुप्ति के कितने भेद हैं ? उत्तर : दो - (१) चेष्टानिवृत्ति - कायोत्सर्ग - ध्यानावस्था में अनेक प्रकार के उपद्रव उपस्थित होने पर भी काया को स्थिर रखना तथा योग निरोध अवस्था में काय-चेष्टा का सर्वथा स्थिरिकरण चेष्टा निवृत्ति कायगुप्ति है। (२) यथासूत्रचेष्टा निवृत्ति - श्रमणाचार की विधि के अनुसार गमनआगमन आदि में शरीर की जो मर्यादित प्रवृत्ति होती है, वह यथासूत्रचेष्टा निवृत्ति है। ७७५ ) समिति तथा गुप्ति में क्या अंतर है ? उत्तर : समिति में सत्क्रिया का प्रवर्तन मुख्य है और गुप्ति में असत्क्रिया का निषेध मुख्य है। ७७६ ) अष्टप्रवचनमाता किसे और क्यों कहा गया है ? उत्तर : ५ समिति तथा ३ गुप्ति, ये आठ अष्टप्रवचन माता कही जाती है। इन आठों से ही संवर धर्म रुपी पुत्र का पालनपोषण होता है । इसलिये . इन्हें प्रवचनमाता कहा गया है। बावीस परीषहों का विवेचन ७७७) परीषह किसे कहते हैं ? उत्तर : 'परीषह' शब्द परि+सह के संयोग से बना है। अर्थात् परिसमन्तात् - श्री नवतत्त्व प्रकरण २९३
SR No.022327
Book TitleNavtattva Prakaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNilanjanashreeji
PublisherRatanmalashree Prakashan
Publication Year
Total Pages400
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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