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________________ ७५९) परिभोगेषणा किसे कहते हैं ? उत्तर : विधिपूर्वक ग्रहण किये या लाये हुए आहारादि का विधिपूर्वक परिभोग करना । यहाँ विधि से अभिप्राय आहार की निंदा-स्तुति से हैं । आहार को ५ मांडली के दोष टालकर ग्रहण करना चाहिए। इसका दूसरा नाम ग्रासैषणा भी है। ७६०) मांडली-गासैषणा के ५ दोष कौन-से हैं ? उत्तर : (१) संयोजिका दोष - स्वाद के लिये चीनी, नमक आदि मिलाना । (२) प्रमाणातिक्रम दोष - अपरिमित आहार ग्रहण करना । (३) अंगार दोष - वस्तु के स्वाद, रुप आदि की प्रशंसा करना । (४) धूम्र दोष - अस्वादिष्ट वस्तु की निंदा करना । (५) कारणाभाव - कारण बिना आहार लेना और कारण बिना छोडना । ७६१) किस कारण से आहार ग्रहण किया जाता है ? उत्तर : साधु छह कारणों से आहार ग्रहण करता है - (१) वेदना - क्षुधा शान्त करने के लिये । . (२) वैयावृत्य - सेवा करने के लिये । (३) ईर्यार्थ - इर्यासमिति के शोधन के लिये । (४) संयमार्थ - संयम की रक्षा के लिये । (५) प्राणी प्रत्यय - प्राणियों की रक्षा के लिये । (६) धर्म-चिन्ता - धर्म चिन्तन के लिये । ७६२) साधु किन कारणों से आहार का त्याग करता है ? उत्तर : (१) आतंक - ज्वर आदि रोग की उपशान्ति के लिये । (२) उपसर्ग - राजा या स्वजनों द्वारा उपसर्ग पर । (३) तितिक्षा - सहिष्णु बनने के लिये । (४) ब्रह्मचर्य - शील रक्षा के लिये । (५) प्राणीदया - प्राणियों की रक्षा के लिये । (६) शरीर व्यवच्छेदनार्थ - शरीर के त्याग के लिये । ७६३) आदान समिति किसे कहते हैं ? --------------------- २९० श्री नवतत्त्व प्रकरण
SR No.022327
Book TitleNavtattva Prakaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNilanjanashreeji
PublisherRatanmalashree Prakashan
Publication Year
Total Pages400
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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