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________________ (१४) रसनेन्द्रिय - जिह्वा को वश में न रखना । (१५) स्पर्शेन्द्रिय- शरीर को वश में न रखना । (१६) मन - मन को वश में न रखना । (१७) वचन वचन को वश में न रखना । (१८) काया - काया को वश में न रखना । (१९) भंडोपकरणाश्रव - वस्त्र, पात्र आदि की जयणा न करना । (२०) कुसंगाश्रव - कुसंगति करना । ६५५) आश्रव द्वार कितने हैं ? उत्तर : आश्रव द्वार पांच है - १. मिध्यात्व, २. अविरति, ३. प्रमाद, ४. कषाय, ५. योग । २७२ ६५६ ) मिथ्यात्व किसे कहते है ? उत्तर : जीव को तत्त्व व जिनमार्ग पर अश्रद्धा तथा विपरीत मार्ग पर श्रद्धा होना मिथ्यात्व है । ६५७) मिथ्यात्व के कितने भेद हैं ? उत्तर : स्थानांग सूत्र में मिथ्यात्व के १० भेद प्रतिपादित हैं - १. धर्म को अधर्म कहना । २. अधर्म को धर्म कहना । ३. कुमार्ग को सन्मार्ग कहना । ४. सन्मार्ग को कुमार्ग कहना ५. अजीव को जीव कहना । ६. जीव को अजीव कहना । ७. असाधु को साधु कहना । ८. साधु को असाधु कहना । ९. अमुक्त को मुक्त कहना । १०. मुक्त को अमुक्त कहना । जो जैसा है, उसे वैसा न कहकर विपरीत कहना या मानना मिथ्यात्व का लक्षण है । श्री नवतत्त्व प्रकरण
SR No.022327
Book TitleNavtattva Prakaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNilanjanashreeji
PublisherRatanmalashree Prakashan
Publication Year
Total Pages400
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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