SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 267
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ६. जुगुप्सा - जिसके कारण अमनोज्ञ पदार्थों के प्रति घृणा उत्पन्न हो। ७. स्त्रीवेद - पुरुष के संसर्ग-सुख की अभिलाषा स्त्रीवेद है । ८. पुरुषवेद - स्त्री के संसर्ग-सुख की अभिलाषा पुरुषवेद है। ९. नपुंसकवेद - स्त्री-पुरुष, दोनों के संसर्ग-सुख की अभिलाषा नपुंसकवेद है। ६११) नरक त्रिक किसे कहते है ? उत्तर : नरकगति, नरकानुपूर्वी तथा नरकायुष्य को नरक त्रिक कहते है। ६१२) तिर्यंचद्विक किसे कहते है ? उत्तर : तिर्यंच गति तथा तिर्यंचानुपूर्वी को तिर्यंचद्विक कहते है । ६१३) जातिचतुष्क किसे कहते है ? उत्तर : एकेन्द्रिय, द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय तथा चतुरिन्द्रिय जाति को जातिचतुष्क . कहते है। ६१४) अशुभविहायोगति नामकर्म किसे कहते है ? उत्तर : जिस कर्म के उदय से जीव की चाल ऊँट या गधे जैसी अशुभ होती है, उसे अशुभ विहायोगति नामकर्म कहते है। ६१५) उपघात नामकर्म किसे कहते है ? । उत्तर : जिस कर्म के उदय से स्वयं को बाधा करने वाले अवयव शरीर में मिलते हैं, उसे उपघात नाम कर्म कहते है। जैसे प्रतिजिह्वा, छट्ठी अंगुली आदि । ६१६) ऋषभनाराच संघयण किसे कहते है ? उत्तर : जिस कर्म के उदय से दोनों तरफ हड्डी का मर्कटबंध हो, उस पर हड्डी ___ का पट्टा हो परंतु कील न हो, उसे ऋषभनाराच संघयण कहते है । ६१७) नाराचय संघयण किसे कहते है ? उत्तर : जिस कर्म के उदय से दोनों तरफ मर्कटबंध हो पर वेष्टन व कील न लगी हो, उसे नाराचसंघयण कहते है। ६१८) अर्ध नाराच संघयण किसे कहते है ? उत्तर : जिस शरीर में एक तरफ मर्कट बंध हो व दूसरी तरफ कील हो, उसे २६४ श्री नवतत्त्व प्रकरण
SR No.022327
Book TitleNavtattva Prakaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNilanjanashreeji
PublisherRatanmalashree Prakashan
Publication Year
Total Pages400
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy