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________________ उत्तर : अब्रह्म का सेवन करना, मैथुन कहलाता है । ५५४) परिग्रह किसे कहते है ? उत्तर : आवश्यकता से अधिक वस्तुओं का संग्रह करना तथा उन पर ममत्व रखना, परिग्रह है । ५५५) क्रोध किसे कहते है ? उत्तर : जीव या अजीव पर गुस्सा करने को क्रोध कहते है । ५५६ ) मान किसे कहते है ? उत्तर : घमंड या अहंकार करने को मान कहते है । ५५७) माया किसे कहते है ? उत्तर : कपट या प्रपंच करना माया है । ५५८ ) लोभ किसे कहते है ? उत्तर : लालच या तृष्णा रखने को लोभ कहते है 1 ५५९ ) राग किसे कहते है ? उत्तर : माया तथा लोभ जिसमें अप्रकट रूप से विद्यमान हो, ऐसा आसक्ति रूप जीव का परिणाम राग कहलाता है । ५६०) द्वेष किसे कहते है ? उत्तर : क्रोध तथा मान जिसमें अप्रकट रूप से विद्यमान हो, ऐसा अप्रीति रूप जीव का परिणाम द्वेष कहलाता है । ५६१) कलह किसे कहते है ? उत्तर : लडाई-झगडा या क्लेश करने को कलह कहते है । ५६२) अभ्याख्यान किसे कहते है ? उत्तर : दोषारोपण करना या झूठा कलंक लगाने को अभ्याख्यान कहते है । ५६३ ) पैशुन्य किसे कहते है ? उत्तर : पीठ पीछे किसी के दोष (उसमें हो या न हो) प्रकट करना या चुगली करना, पैशुन्य कहलाता है । ५६४) रति- अरति किसे कहते है ? उत्तर : इन्द्रियों के अनुकूल विषय प्राप्त होने पर राग करना रति है । प्रतिकूल श्री नवतत्त्व प्रकरण २५४
SR No.022327
Book TitleNavtattva Prakaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNilanjanashreeji
PublisherRatanmalashree Prakashan
Publication Year
Total Pages400
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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