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________________ उत्तर : पुण्य बन्ध के नौ कारण हैं - १. अन्न पुण्य - पात्र को अन्न देने से। २. पान पुण्य - पात्र को जल देने से। ३. लयन पुण्य - पात्र को स्थान देने से । ४. शयन पुण्य - पात्र को शय्या, पाट आदि देने से । ५. वस्त्र पुण्य - पात्र को वस्त्र देने से । ६. मन पुण्य - शुभ संकल्प रूप व्यापार से । ७. वचन पुण्य - शुभ वचन रूप व्यापार से । ८. काय पुण्य - काया के शुभ व्यापार से । ९. नमस्कार पुण्य - देव, गुरु तथा अपने से अधिक गुणवान को नमस्कार करने से। ४७१) पात्र कितने प्रकार के होते हैं ? उत्तर : पात्र तीन प्रकार के होते है - १. सुपात्र, २. पात्र, ३. अनुकंपादि पात्र । ४७२) सुपात्र किसे कहते है ? उत्तर : मोक्ष मार्ग की ओर अभिमुख हुए तीर्थंकर भगवान से लेकर मुनि महाराज आदि महापुरुष सुपात्रं है। ४७३) पात्र किसे कहते है ? उत्तर : धर्मी गृहस्थ तथा सद्गृहस्थ पात्र कहलाते हैं। ४७४ ) अनुकंपादि पात्र किसे कहते है ? उत्तर : करुणा, दया करने योग्य अपंग जीव अनुकंपादि पात्र कहलाते हैं । ४७५) सुपात्र को दान देने से क्या लाभ होता है ? उत्तर : सुपात्र को धर्म की बुद्धि से दान देने पर अशुभ कर्मों की महानिर्जरा होती है तथा महान् पुण्यानुबंधी पुण्य का उपार्जन होता है। ४७६) पात्र को दान देने से क्या होता है ? उत्तर : धर्मी गृहस्थादि पात्र को दान देने से भी पुण्य उपार्जन होता है पर मुनि की अपेक्षा अल्प पुण्य का बन्ध होता है । ४७७) अपंगादि जीवों को दान देने से क्या होता है ? ----------------- श्री नवतत्त्व प्रकरण २५१
SR No.022327
Book TitleNavtattva Prakaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNilanjanashreeji
PublisherRatanmalashree Prakashan
Publication Year
Total Pages400
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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