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________________ ४६०) एक द्रव्य कहाँ पाया जाता है ? . . .. उत्तर : अलोक में एक द्रव्य (आकाशास्तिकाय) पाया जाता है। ४६१) दो द्रव्य कहाँ पाये जाते हैं ? उत्तर : विभाव परिणामी में जीवास्तिकाय और पुद्गलास्तिकाय - ये दो द्रव्य पाये जाते हैं। ४६२) चार द्रव्य कहाँ पाये जाते हैं ? उत्तर : अरुपी अजीव में चार द्रव्य (धर्मास्तिकाय, अधर्मास्तिकाय, आकाशास्तिकाय और काल) पाये जाते हैं । ४६३) पाँच द्रव्य कहाँ पाये जाते हैं ? उत्तर : जीवास्तिकाय को छोड़ कर शेष पाँच द्रव्य अजीव में पाये जाते हैं। ४६४) छह द्रव्य कहाँ पाये जाते हैं ? उत्तर : संसार में छहों द्रव्य पाये जाते हैं । ४६५) अजीव तत्त्व के कुल कितने भेद हैं ? उत्तर : अजीव तत्त्व के मुख्य भेद १४ है, जो पूर्व में बताये गये हैं परंतु विशेष विचारणा करने पर कुल भेद ५६० होते हैं । ५३० भेद रूपी अजीव के तथा ३० भेद अरूपी अजीव के होते है। . ४६६) अजीव के ५६० भेदों को स्पष्ट करो । उत्तर : रूपी अजीव के ५३० भेद - १. वर्ण के १०० भेद : कृष्ण-नील-रक्त-पीत तथा श्वेत, इन पांचों वर्गों में ५ रस, २ गंध, ८ स्पर्श और ५ संस्थान होते हैं । इन २० भेदों को ५ वर्ण से गुणा करने पर २० x ५ = १०० ।। २. गंध के ४६ भेद : सुरभि व दुरभि - दो गंध है । प्रत्येक गंध में ५ वर्ण, ५ रस, ८ स्पर्श तथा ५ संस्थान है। इन २३ भेदों को दो गंध से गुणा करने पर २३ x २ = ४६ । ३. रस के १०० भेद : तिक्त, कटु, कषाय, अम्ल और मधुर, इन पांच रसों में प्रत्येक में ५ वर्ण, २ गंध, ८ स्पर्श तथा ५ संस्थान है। इन बीस को ५ रस से गुणा करने पर २० x ५ = १०० । श्री नवतत्त्व प्रकरण
SR No.022327
Book TitleNavtattva Prakaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNilanjanashreeji
PublisherRatanmalashree Prakashan
Publication Year
Total Pages400
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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