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________________ ३५६) पुद्गल के लक्षण क्या है ? उत्तर : उत्तराध्ययन सूत्र में पुद्गल को ५ लक्षणयुक्त कहा गया है - १. वर्ण - काला, नीला, लाल, पीला, सफेद । २. गंध - सुरभि तथा दुरभि । ३. रस - तीखा, कडवा, कसैला, खट्टा और मीठा । ४. स्पर्श - कठोर-कोमल, हल्का-भारी, ठंडा-गरम, स्निग्ध-रूक्ष । ५. संस्थान - परिमंडल, वृत्त, त्र्यंस, समचतुरस्त्र तथा आयत । ये पांचो लक्षण प्रत्येक पुद्गल में पाये जाते हैं । ३५७) पुद्गल अनंतानंत है जबकि लोकाकाश के प्रदेश असंख्य है। इस स्थिति में लोक प्रमाण का अवगाहन पुद्गल में कैसे घटेगा ? उत्तर : अल्प और अधिक प्रदेशों का अवगाहन करने में सघन और असघन परिणति ही कारण है। अधिक परमाणु वाला स्कंध भी सघन परिणति से अल्प क्षेत्र में रह सकता है और उसकी अपेक्षा अल्प परमाणु वाला स्कंध असघन परिणति से उससे अधिक क्षेत्र में रहता है। एक परमाणु एक आकाश प्रदेश में रहता है, वैसे ही द्वि-प्रदेशी, संख्यात या असंख्यात यावत् अनंतप्रदेशी स्कंध भी परमाणु की भांति सघन परिणति के योग से एक आकाश प्रदेश में रह सकते हैं। जैसे एक सेर पारा जितने क्षेत्र को रोकता है, उससे अधिक एक सेर लोहा, उससे अधिक एक सेर मिट्टी, और उससे भी अधिक एक सेर रुई क्षेत्र का अवगाहन करती है। यद्यपि रूई से मिट्टी का, मिट्टी से लोहे का और लोहे से पारे का पुद्गल प्रचय अधिक है। रुई से मिट्टी, मिट्टी से लोहे और लोहे से पारे की सघन परिणति है । अतः एव क्षेत्र का रोकना भी क्रमशः अल्प, अल्पतर होता है। जैसे अनंत प्रदेशी एक स्कंध असंख्य प्रदेशों में समा जाता है, वैसे ही अनंत प्रदेशी अनेक स्कंध भी असंख्य प्रदेशों में समा जाते हैं । एक कक्ष में जहाँ एक दीपक का प्रकाश समा जाता है, वहीं सैंकडों दीपक का प्रकाश भी समा जाता ------- श्री नवतत्त्व प्रकरण
SR No.022327
Book TitleNavtattva Prakaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNilanjanashreeji
PublisherRatanmalashree Prakashan
Publication Year
Total Pages400
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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