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________________ जाता है, अत: इन तीनों के परमाणु नहीं होते हैं । ३२१ ) धर्मास्तिकाय का स्वरूप तथा लक्षण क्या है ? उत्तर : धर्मास्तिकाय के स्वरूप तथा लक्षण को छह प्रकार से जाना जाता हैधर्मास्तिकाय द्रव्य से - एक द्रव्य है । - क्षेत्र से - सकल लोकव्यापी है (अलोक में नहीं) । काल से कभी अन्त होगा, अतः त्रिकालवर्ती है 1 भाव से - अरूपी है (वर्ण-गंध-रस - स्पर्श रहित है ) । - गुण से - गमन सहायक, गति में उदासीन भाव से सहायता करने वाला है । संस्थान से - लोकाकृति समान । ३२२ ) अधर्मास्तिकाय के स्वरूप तथा लक्षण क्या है ? उत्तर : अधर्मास्तिकाय द्रव्य से एक द्रव्य है । २१२ काल से क्षेत्र से - सकल लोक में व्याप्त है। (अलोक में नहीं है ।) अनादि अनन्त है । - अनादि-अनन्त है अर्थात् न तो कभी उत्पन्न हुआ है, न काल से भाव से अरूपी है। गुण से - उदासीन भाव से स्थिर रहने में सहायक है । संस्थान से - लोकाकृति समान । - ३२३) आकाशास्तिकाय से स्वरूप तथा लक्षण क्या है ? उत्तर : आकाशास्तिकाय द्रव्य से एक द्रव्य है । - क्षेत्र से - लोक- अलोक व्यापी है । अनादि-अनन्त है । - 1 भाव से गुण से संस्थान से - ठोस - गोलाकृति समान ३२४) काल का स्वरूप तथा लक्षण क्या है ? उत्तर : काल-द्रव्य से अनन्त द्रव्य है । अरूपी (अमूर्त) है । अवकाश देने वाला है । - श्री नवतत्त्व प्रकरण
SR No.022327
Book TitleNavtattva Prakaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNilanjanashreeji
PublisherRatanmalashree Prakashan
Publication Year
Total Pages400
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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