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________________ उत्तर : जीव एवं पुद्गलों की गति में सहायक बनने वाले द्रव्य को धर्मास्तिकाय कहते है। ३०२) अधर्मास्तिकाय किसे कहते है ? उत्तर : जीव तथा पुद्गल को स्थिर करने में सहयोग करने वाला द्रव्य अधर्मास्तिकाय कहलाता है। ३०३) आकाशास्तिकाय किसे कहते है ? उत्तर : जीव तथा पुद्गलों को अवकाश (स्थान) देने वाला द्रव्य आकाशास्तिकाय कहलाता है। ३०४) पुद्गलास्तिकाय किसे कहते है ? उत्तर : जो प्रतिसमय पूरण एवं गलन स्वभाव वाला है, उसे पुद्गलास्तिकाय ___ कहते है। ३०५) काल किसे कहते है ? उत्तर : वस्तुओं के परिणमन अर्थात् परिवर्तन में सहकारी रूप शक्ति को काल कहते है । अथवा जो नवीन वस्तु को पुरानी तथा पुरानी को नष्ट करे, वह काल है। ३०६) अस्तिकाय किसे कहते है ? उत्तर : अस्ति - छोटे से छोटा अविभाज्य अंश, जिसके दो टुकडे न हो सके ऐसा अविभागी प्रदेश । काय अर्थात् समूह। अस्तिकाय - प्रदेशों के समूह को अस्तिकाय कहते है। ३०७) षद्रव्य में कितने द्रव्य अस्तिकाय कहलाते हैं ? उत्तर : १. धर्मास्तिकाय, २. अधर्मास्तिकाय, ३. आकाशास्तिकाय, ४. जीवास्तिकाय, ५. पुद्गलास्तिकाय, ये पांचों द्रव्य प्रदेशों के समूह होने से अस्तिकाय कहलाते है। ३०८) काल को अस्तिकाय क्यों नहीं कहा गया है ? उत्तर : काल केवल वर्तमान में एक समय रूप ही होता है। उसके स्कंध, देश, प्रदेश नहीं होते हैं, क्योंकि वह अखण्ड द्रव्य रूप है । इसलिये उसके साथ अस्तिकाय शब्द नहीं जोड़ा जाता । ----------------- २०८ श्री नवतत्त्व प्रकरण
SR No.022327
Book TitleNavtattva Prakaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNilanjanashreeji
PublisherRatanmalashree Prakashan
Publication Year
Total Pages400
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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