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________________ कोरडिया, अध्यापक-नाकोडा ज्ञानशाला के प्रेमपूर्ण सहयोग ने प्रस्तुत सर्जन में बहुत महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा की है। उन्होंने समय की अल्पता और अत्यंत व्यस्तता में भी मेरे निवेदन को सहर्ष स्वीकार कर इस कृति को अपने कुशल संपादन से संवारा है। उनका यह अपनत्व और प्रेमपगा अवदान मेरे स्मृतिकक्ष में सदैव बिराजमान रहेगा। प्रस्तुत कृति की निर्मिति में मैंने जिन-जिन महापुरुषों, आचार्यों एवं साधकों द्वारा रचित साहित्य का आलंबन लिया, उन समस्त को मैं हृदय से श्रद्धासिक्त वंदनाएँ प्रेषित करती हूँ। इस आलेखन में मुझे प्रत्यक्ष वा परोक्ष रुप से जिन-जिन का सहयोग मिला है, मैं उनके प्रति भी सादर कृतज्ञ हूँ। प्रस्तुत विवेचन ने मेरे स्वाध्याय की जहाँ प्राणवान् बनाया है, वहीं मेरी तत्त्वरुचि को भी और अधिक गहरा किया है । इसके लेखन में मैं कहाँ तक सफल हो पायी हूँ, इसकी समीक्षा तो पाठकजन ही कर पायेंगे । . इस विवेचन में मेरे द्वारा वीतराग-वाणी के विरुद्ध ज्ञाताज्ञात भाव से अगर कुछ भी लिखा गया हो तो मैं अंत:करण से क्षमाप्रार्थी हूँ। विद्युत चरण रज साछी नीलांजना (साध्वी डॉ. नीलांजनाश्री) - श्री नवतत्त्व प्रकरण
SR No.022327
Book TitleNavtattva Prakaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNilanjanashreeji
PublisherRatanmalashree Prakashan
Publication Year
Total Pages400
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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