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________________ संकल्प से ही संभव है । इन जीवों के केवल स्पर्शनेन्द्रिय ही होती है। ये जीव अगर ४ पर्याप्तियाँ पूर्ण करने से पूर्व ही मर जाते हैं, तो अपर्याप्ता और ४ पर्याप्तियाँ पूर्ण करने के पश्चात् मरते हैं, तो पर्याप्ता कहलाते हैं । १८२ ) सूक्ष्म एकेन्द्रिय अपर्याप्ता तथा पर्याप्ता जीव कहाँ रहते हैं ? उत्तर : संपूर्ण लोकाकाश में । १८३ ) बादर एकेन्द्रिय अपर्याप्ता तथा पर्याप्ता जीव से क्या अभिप्राय है ? उत्तर : जिन जीवों के बहुत सारे शरीर एकत्रित होने पर चक्षुगोचर या यंत्रगोचर होते हैं, ऐसे बादर नाम कर्म वाले पृथ्वी, अप्, तेउ, वायु तथा वनस्पतिकाय के जीव बादर एकेन्द्रिय कहलाते हैं । इन जीवों का छेदन-भेदन तथा अग्नि, जलादि द्वारा हनन भी होता है । ये बादर एकेन्द्रिय जीव मनुष्य के भोग-उपभोग में बहुत ही उपकारी बनते हैं । इन्हीं के उपकार से मनुष्य को अन्न, जल, फल, वस्त्रादि की प्राप्ति होती है। स्पर्शनेन्द्रिय से युक्त ये जीव यदि ४ पर्याप्तियाँ पूर्ण किये बिना मरते हैं तो अपर्याप्ता तथा पूर्ण करके मरते हैं तो पर्याप्ता बादर केन्द्रिय कहलाते हैं । १८४) अपर्याप्ता तथा पर्याप्ता बादर एकेन्द्रिय जीव कितने स्थान में होते हैं ? उत्तर : लोक के असंख्यातवें भाग में । १८५) अपर्याप्ता तथा पर्याप्ता द्वीन्द्रिय किसे कहते हैं ? उत्तर : स्पर्श तथा रसना, इन दो इन्द्रियों वाले जीवों को बेइन्द्रिय कहा जाता है । ये जीव केवल बादर ही होते हैं। ऐसे जीव स्वयोग्य ५ पर्याप्तियाँ पूर्ण करने से पूर्व मरते हैं, तो अपर्याप्त तथा पूर्ण करके मरते हैं, तो पर्याप्त द्वीन्द्रिय कहलाते हैं । १८६ ) अपर्याप्ता तथा पर्याप्ता त्रीन्द्रिय किसे कहते हैं ? उत्तर : स्पर्श, रस तथा घ्राण, इन तीन इन्द्रियों से युक्त जीव त्रीन्द्रिय कहलाता है। ये जीव स्वयोग्य ५ पर्याप्तियाँ पूर्ण करने से पूर्व मृत्यु को प्राप्त करे तो अपर्याप्ता और पूर्ण करके मरे तो पर्याप्ता त्रीन्द्रिय कहलाते हैं । १८७) अपर्याप्ता तथा पर्याप्ता चतुरिन्द्रय किसे कहते है ? १९० श्री नवतत्त्व प्रकरण
SR No.022327
Book TitleNavtattva Prakaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNilanjanashreeji
PublisherRatanmalashree Prakashan
Publication Year
Total Pages400
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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