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________________ पुद्गल परावर्तन का स्वरुप गाथा उस्सप्पिणी अणंता, पुग्गलपरियट्टओ मुणेयव्यो । तेऽणंताऽतीअद्धा, अणागयद्धा अणंतगुणा ॥५४॥ अन्वय अणंता उस्सप्पिणी पुग्गलपरियट्टओ मुणेयव्वो, ते अणंता अतीअ अद्धा, अणंतगुणा अणागय अद्धा ॥५४॥ संस्कृतपदानुवाद उत्सर्पिण्योऽनन्ताः, पुद्गलपरावर्तको ज्ञातव्यः । तेऽनन्ता अतीताद्धा, अनागताद्धानन्तगुणाः ॥५४॥ शार्थ उस्सप्पिणी - उत्सर्पिणियाँ अणंता - अनंत अणंता - अनंत अतीअ - अतीत (भूत) पुग्गल - पुद्गल : अद्धा - काल परियट्टओ - परावर्तनकाल अणागय - अनागत (भविष्य) मुणेयव्वो - जानना चाहिए | अद्धा - काल ते - ऐसे पुद्गलपरावर्तन अणंतगुणा - अनन्तगुणा भावार्थः अनन्त उत्सर्पिणी तथा अवसर्पिणी का एक पुद्गल परावर्तन काल जानना चाहिए । ऐसे अनंत पुद्गल परावर्त्तन प्रमाण अतीत काल तथा उससे अनंतगुणा भविष्य काल है ॥५४॥ विशेष विवेचन प्रस्तुत गाथा में एक पुद्गल परावर्तनकाल के स्वरूप का विश्लेषण है। १० कोडाकोडी सागरोपम - एक अवसर्पिणी १० कोडाकोडी सागरोपम - एक उत्सर्पिणी २० कोडाकोडी सागरोपम - एक कालचक्र । श्री नवतत्त्व प्रकरण
SR No.022327
Book TitleNavtattva Prakaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNilanjanashreeji
PublisherRatanmalashree Prakashan
Publication Year
Total Pages400
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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