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________________ मोक्ष में गया? यह प्रश्न निरुत्तर है। सदाकाल से जीव मोक्ष में जाते रहे हैं । इस प्रकार समस्त सिद्धों की अपेक्षा से अनादि - अनंतकाल जाने । ६. अन्तरद्वार : सिद्ध जीव अपनी स्वरूपावस्था से पतित होकर, दूसरी योनि धारण करने के बाद फिर सिद्ध हो, इसका नाम अंतर है । सिद्ध जीवों को अंतर (पतन) का अभाव है। उन्हें सिद्ध गति छोडकर दूसरी योनि में परस्पर क्षेत्रकृत अंतर भी नहीं है। क्योंकि जहाँ एक सिद्ध है, उसी के साथ उसी अवगाहना में अनेक सिद्ध हैं। अत: कालकृत तथा क्षेत्रकृत दोनों अंतर सिद्धों में नहीं है। भाग तथा भावद्वार का कथन गाथा सव्वजियाणमणंते, भागे ते तेसिं दंसणं गाणं । खइए भावे परिणामिए, अ पुण होइ जीवत्तं ॥४९॥ अन्वय" .. ते सव्व जियाणं अणंते भागे, तेसि देसणं नाणं खइए भावे, अपुण जीवत्तं परिणामिए होइ ॥४९॥ संस्कृत पदानुवाद सर्वजीवानामनन्ते, भागे ते तेषां दर्शनं ज्ञानं । क्षायिके भावे पारिणामिके, च पुनर्भवति जीवत्वम् ॥४९॥ शब्दार्थ सव्व - सर्व खइए - क्षायिक जियाणं - जीवों के भावे - भाव है अणंते - अनन्तवें परिणामिए - पारिणामिक भागे - भाग में है अ - और ते - वे (सिद्धजीव) पुण - परन्तु तेसिं - उन सिद्धों का होइ - होता है दंसणं - केवलदर्शन जीवत्तं - जीवत्व नाणं - केवलज्ञान ------------------- श्री नवतत्त्व प्रकरण १४२
SR No.022327
Book TitleNavtattva Prakaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNilanjanashreeji
PublisherRatanmalashree Prakashan
Publication Year
Total Pages400
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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