SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 135
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ' इसमें मोक्ष की सत्ता के विषय प्रमाण प्रस्तुत किये गये हैं । न्यायशास्त्र में किसी भी वस्तु को सिद्ध करने के लिये पांच अवयवों वाले वाक्यों का प्रयोग होता है, जिसे पंचावयव कहते हैं। १. प्रतिज्ञा : इस अवयव में जिसमें और जिसको सिद्ध करना हो, वे दो पद होते हैं, इसको प्रतिज्ञा कहते हैं । २. हेतु : इसमें सिद्ध करने का कारण दिया जाता है । ३. उदाहरण : जहाँ कारण या हेतु है, वहाँ कार्य अवश्य पाया जाता है, उसका दृष्टान्त उदाहरण कहलाता है । ... ४. उपनय : उदाहरण के अनुसार घटने का हो, उसे उपनय कहते हैं । ५. निगमन : प्रतिज्ञा को जहाँ सिद्ध किया जाये या निष्कर्ष स्थापित किया जाये, उसे निगमन कहते हैं। . 'मोक्ष' को पंचावयव के द्वारा इस प्रकार सिद्ध किया जाता है। १) मोक्ष सत् (विद्यमान) है। (प्रतिज्ञा) २) अर्थरुप शुद्ध पद होने से । (हेतु) । ३) जो-जो अर्थरुप शुद्ध पद वाले होते हैं, वे सभी पदार्थ विद्यमान हैं, जैसे - जीव (उदाहरण) ४) मोक्ष भी अर्थरुप शुद्ध पद है । (उपनय) ५) अतः मोक्ष भी (विद्यमान) सत् है । (निगमन) प्रस्तुत गाथा में 'पद' के साथ 'अर्थरुप शुद्ध' यह विशेषण है । अगर यह विशेषण नहीं होता तो डित्थ, कत्थ आदि कल्पित एक-एक पद वाले शब्द भी पदार्थ हो जाते । जो शब्द कल्पित-अर्थशून्य है, अथवा जिस शब्द की व्युत्पत्ति नहीं होती, वह पद नहीं हो सकता । जो सार्थक पद है, वही सत् है। मोक्ष चूंकि कल्पित नहीं बल्कि व्युत्पत्तिसिद्ध शब्द है, अतः यह पद है और शुद्ध पद है । मोक्ष सत् (विद्यमान) है । वह 'आकाश-पुष्प' की तरह अविद्यमान नहीं है । 'आकाश-पुष्प' यह दो शब्दों से निर्मित पद है, इसका अर्थ है - आकाश का फूल, जिसका कोई अस्तित्व नहीं है। अलग अलग एक-एक पद की सत्ता तो है परन्तु सम्मिलित शब्दों (आकाश-पुष्प) की कोई सत्ता नहीं १३२ श्री नवतत्त्व प्रकरण
SR No.022327
Book TitleNavtattva Prakaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNilanjanashreeji
PublisherRatanmalashree Prakashan
Publication Year
Total Pages400
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy