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________________ शब्दार्थ पड - पट्टी जह - यथा, जैसे पडिहार - प्रतिहार (द्वारपाल) एएसिं - इनका असि - तलवार भावा - स्वभाव है। मज्ज - शराब (मदिरा) कम्माण - कर्मों का हड - बेडी वि - भी चित्त - चित्रकार जाण - जानो कुलाल - कुम्हार तह - तथा (वैसा ही) भंडगारीणं - भंडारी भावा - स्वभाव ___ भावार्थ पट्टी, द्वारपाल, तलवार, मदिरा, बेडी, चित्रकार, कुम्हार तथा भंडारी जैसे स्वभाव वाले होते हैं, इन ज्ञानावरणीयादि आठों कर्मों का भी वैसा ही स्वभाव जानो ॥३८॥ विशेष निवेचन प्रस्तुत गाथा में ८ कर्मों के स्वर्भाव का वर्णन किया गया है। राग-द्वेष के निमित्त से कार्मण वर्गणा के पुद्गल जब जीव के साथ बंधते हैं, उसे कर्म कहते है। १. ज्ञानावरणीय कर्म : जो आत्मा के ज्ञान गुण को आच्छादित करे, वह ज्ञानावरणीय कर्म है । इस कर्म का स्वभाव ज्ञान गुण को आवृत्त करना है। जिस प्रकार आंख पर पट्टी बांधने पर दिखना बंद हो जाता है, उसी प्रकार ज्ञानावरणीय कर्म जीव के अनंतज्ञान गुण पर आवृत्त हो जाता है और वह वस्तु के विशेष गुण को नहीं जान पाता है । २. दर्शनावरणीय कर्म : जो कर्म जीव के दर्शन गुण को आच्छादित करें, वह दर्शनावरणीय कर्म है । इस कर्म को द्वारपाल की उपमा दी गयी है। जिसप्रकार द्वारपाल के द्वारा रोके जाने पर मनुष्य राजा को मिलने की इच्छा होने पर भी उनसे मिल नहीं सकता । वैसे ही जीव चक्षु के द्वारा बहुत दूर की वस्त देखने की इच्छा होने पर भी इस कर्म के आवरण से देख नहीं सकता और इन्द्रियों के विषय को नहीं जान सकता । यह कर्म जीव के अनंतदर्शन गुण का घात करता है। १२० श्री नवतत्त्व प्रकरण
SR No.022327
Book TitleNavtattva Prakaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNilanjanashreeji
PublisherRatanmalashree Prakashan
Publication Year
Total Pages400
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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