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________________ पायच्छित्तं, विणओ, वेयावच्चं, अ सज्झाओ, झाणं तहेव उस्सग्गो अवि, अभितरओ तवो होइ ॥३६॥ संस्कृतपदानुवाद अनशनमूनौदरिका, वृत्तिसंक्षेपणं रसत्यागः । कायक्लेशः संलीनता, च बाह्यस्तपो भवति ॥३५॥ प्रायश्चित्तं विनयो, वैयावृत्यं तथैव स्वाध्यायः । ध्यानं कायोत्सर्गोऽपि, चाभ्यन्तस्तपो भवति ॥३६॥ शब्दार्थ अणसणं - अनशन संलीणया - संलीनता ऊणोअरिया - ऊनोदरिका य - और वित्तिसंखेवणं - वृत्ति संक्षेप बज्झो - बाह्य रसच्चाओ - रसत्याग. तवो - तप कायकिलेसो - कायक्लेश होइ - होता है। .. शब्दार्थ पायच्छित्तं - प्रायश्चित्त... उस्सग्गो - उत्सर्ग (कायोत्सर्ग) विणओ - विनय '... अवि - भी वेयावच्चं - वैयावृत्य अ - और तहेव - तथैव (उसी प्रकार) अभितरओ - आभ्यंतर सज्झाओ - स्वाध्याय, . तवो होई - तप होता है। झाणं - ध्यान । भावार्थ अनशन, ऊणोदरी, वृत्तिसंक्षेप, रसपरित्याग, कायक्लेश, संलीनता, ये (६)बाह्य तप हैं । प्रायश्चित्त, विनय, वैयावृत्य, स्वाध्याय, ध्यान तथा कायोत्सर्ग ये (६) आभ्यंतर तप हैं ॥३५-३६॥ विशेष विवेचन प्रस्तुत गाथाद्वय में निर्जरा के १२ भेदों का कथन है। छह बाह्य तप तथा श्री नवतत्त्व प्रकरण १११
SR No.022327
Book TitleNavtattva Prakaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNilanjanashreeji
PublisherRatanmalashree Prakashan
Publication Year
Total Pages400
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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