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________________ विशेष विवेचन भावना : मोक्षमार्ग के प्रति भावों की वृद्धि हो, ऐसा चिन्तन करना भावना है। भावना अर्थात् अनुप्रेक्षा । गहरा चिन्तन करना अनुप्रेक्षा है। यदि चिन्तन तात्त्विक तथा गहरा होता है तो उसके द्वारा रागद्वेष की वृत्तियों का होना रूक जाता है, इसीलिये ऐसे चिन्तन का संवर के उपाय में वर्णन किया गया है । १. अनित्य भावना : धन-दौलत, रूप-सौंदर्य, पत्नी-परिवार, दुकानमकान, ये संसार की समस्त वस्तुएँ क्षणिक और नाशवान् हैं । सभी पदार्थ अनित्य और अस्थिर हैं । इस प्रकार की अनुप्रेक्षा करना अनित्य भावना है। यह भावना भरत चक्रवर्ती ने भायी थी। २. अशरण भावना : इस संसार में दुःख व आपत्ति आने पर कोई भी किसी के लिये त्राण या शरण रूप नहीं है । एक मात्र जिनधर्म ही शरणभूत है। इस प्रकार का चिन्तन अशरण भावना है। यह भावना अनाथी मुनि ने भायी थी। ३. संसार भावना : चार गति रूप इस दुःखदायी संसार में निरन्तर भटकना पडता है। इस जन्म-मरण के चक्र में न तो कोई स्वजन है, न परजन। क्योंकि प्रत्येक के साथ जन्म जन्मांतरों में हर तरह के संबंध हो चुके हैं । यह संसार एक तरह का रंगमंच है, जहाँ तरह-तरह के नाटक होते हैं । अतः यह त्याग करने योग्य है। इस प्रकार का चिंतन करना संसार भावना है। यह भावना मल्लिनाथजी ने भायी थी । - ४. एकत्व भावना :जीव अकेला ही आया है और परलोक में अकेला ही जायेगा। अपने कर्मों का कर्ता और भोक्ता भी जीव अकेला ही है। उसका दुःख या व्याधि दूसरा कोई भी दूर नहीं कर सकता । सुख-दुःख का फल भी जीव को अकेले ही भोगना पडता है। इस प्रकार का चिंतन एकत्व भावना है। यह भावना नमिराजर्षि ने भायी थी। ५. अन्यत्व भावना : धन-कुटुंब, माता-पितादि परिवार सभी मुझसे भिन्न है । मैं चैतन्यमय आत्मा इन सबसे अलग हूँ। परपदार्थ को अपना मानना अज्ञानजन्य बुद्धि है। आत्मा का किसी से कोई संबंध नहीं है। इस अनुप्रेक्षा ------------------------ श्री नवतत्त्व प्रकरण १०३
SR No.022327
Book TitleNavtattva Prakaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNilanjanashreeji
PublisherRatanmalashree Prakashan
Publication Year
Total Pages400
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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