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________________ देववंदन नाष्य अर्थसहित. ५ करी, त्रीजो विसोहिकरणेणं एटले राग शेषनुं टालवू अतिचार टालवानी विशुदि करवे करी, चोथो विसल्ली करणेणं एटले माया मात्सर्यादि वर्जवे कर। मन वचन कायानी निःशल्यत्व त्रि काल अतीत अनागत वर्तमानने विषे अरिहंता दिक षट्पद साथै पापकर्म टालवे कानस्सग्गर्नु फल आपे ए चार नत्तरीकरणादि निमित्त कयां तथा (साझाा के०) श्रादिक (य के०) वली (पणदेन के)पांच हेतुले तेनां नाम कहे बे, सहाए, मेहाए, धिईए, धारणाए, अणुप्पेहाए एटले एक श्रा, बीजी मेधा एटले बुदि, त्रीजी धृति एटले चित्तस्वस्थता, चोथी धारणा ते यथा किंचित् शिक्षा ग्रहणता पांचमी अनुपेक्षा ते तदे काग्रता, ए सर्व पांचे वानां वधते थके पांचहेतु जाणवा तथा (वेयावञ्चगरताई के०) वेयावञ्चक रत्वादिक वेआवञ्चगराणं संतिगराणं, सम्मति समाहिगराणं ए ( तिनि के) त्रण हेतु करे, ते कहे . एक वैयावञ्चकर सम्यग्दृष्टि देव, बीजो संतिगराणं एटले सम्यकदृष्टिने रोगादिकनी शांति
SR No.022326
Book TitleChaityavandanadi Bhashya Trayam Balavbodh Sahit
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendrasuri
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages332
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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