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________________ देववंदन नाष्य अर्थसहित. ७३ जाणवं. तथा श्रीतीर्थकरने (वंदणवनिप्राश्के) बंदणवत्तियादि (उ के ) ( निमित्ता के) निमित्त कानस्सग्ग करवो, जेम के प्रथम वंदणवत्ति आए एटले श्रीजिनराजने वांदवायी जे लान्न थाय, ते कानस्लग्गमां मुजने लान पान. बी जो पूअणवत्तियाए एटले केशर चंदनादिक धूप प्रमुखें परमेश्वरने पजवाथी जे लान्न थाय, से मुजने कामस्सग्गमां लान्न थान. त्रीजो सकार वनिआए एटले सत्कार ते श्रीजिनेश्वरने आन्नर णादि चढाववाश्री जे लान थाय, ते मुजने कान स्सग्गमा लान थान. चोथो सम्मागवत्तिाए एटले सन्मान ते श्रीजिनना स्तवनगुण कहेवाथीं जे लान घाय, ते मुकने कानस्सग्गमा लान थान, पांचमो बोझिलान वत्तियाए एटले आगले नवे समकेतनो लान थाय, ते निमित्तें कानस्स. ग्ग करूं. हुं निरुवसर एटले निरुपसर्ग ते ज न्म. जरा मरणादि नपसर्ग ट्रालवा निमितें कानस्सग्ग करूं. ए निमित्त अने एक प्रथम कह्यु एवं तात या. तथा बाग्मुं (पवयणसुर
SR No.022326
Book TitleChaityavandanadi Bhashya Trayam Balavbodh Sahit
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendrasuri
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages332
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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