SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 81
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ देववंदन नाष्य अर्थसहित. ? ज्ञान नश्री पाम्या त्यांसुधी तेपण ( जिगजीवा के) जिनना जीव कहेवाय, तेने ( दवजिणा के) च्यथकी जिन कहिये. चोथा जे केवल ज्ञान पामीने (समवसरणना के०) श्रीसमवस रणने विषे स्थित थया, बेग थका धर्मोपदेश आपे तेने (नाव जिणा के) भावथकी जिन जागवा ॥ ५१॥ ( दारं के) ए चार प्रकारें जि नना नाम, पन्नरमुं हार कj. उत्तर बोल १एए थया ॥ हवे चार थोयोनु शोलमुं द्वार कहे जे. अहिगय जिण पढमथई, बीया सवा ण तश्य नाणस्स ॥ वेयावच्च गराणन, न वनगढ़ चन थुई॥५॥ दारं ॥१६॥ __ अर्थः-जेनी आगल देव वांदीयें एवी जे नामे मूलनायकनी प्रतिमा होय एटले प्रस्तुत अंगीक यो जे चोवीश जिन मांहेलो को श्रीशषनादि क एक जिन तेने (अहिगयजिस के०) अधिकृत जिन कहीये तेनी (पढमथुई के० ) प्रथम स्तुति
SR No.022326
Book TitleChaityavandanadi Bhashya Trayam Balavbodh Sahit
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendrasuri
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages332
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy