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________________ ७० देववंदन नाष्य अर्थसहित. रहित (असढाइनण के ) अशठ पंमित, गी तार्थ पुरुषो तेणे जे आचस्यो होय तो तेवा गी तार्थनी करेली जे (आयरणावि के) आचारणा ते पण (हु के) निश्चे श्रीनगवंतनी (आण के ) आझाज कहीयें (इति वयणन के) एवं वचन , ते माटे (सु के) सुष्टु एटले जला अथवा सुविहित अशठ गीतार्थनी करेली पाच रणाने पण (बहुमन्नति के ) गीतार्थ जन घj माने ॥४॥ ___ ए बार अधिकारनुं बारमुंहार का, यहां सुधी उत्तर बोल १एन श्रया ॥ हवे चार वांदवा योग्य, तेरमुंआदे देइने बीजां पण हार कहे . चन वंदणिऊ जिण मुणि, सुय सिधा॥ दारं (॥१३॥) इह सुराइ सरणिका ॥दारं ॥१४॥ चनह जिणा नाम ठवण, दव नाव जिण एणं ॥५॥ अर्थः-(चनवंदणिऊ के) चार वंदनीयक
SR No.022326
Book TitleChaityavandanadi Bhashya Trayam Balavbodh Sahit
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendrasuri
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages332
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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