SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 62
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ६२ देववंदन नाष्य अर्थसहित. ___तथा पुस्करबरदीरूप श्रुत स्तवने विषे स्क, ढे, म्मा, ई, स्स, स्स, स्स, फो, स्स, स्त, ला, रक, स्त, च्चि, स्त, म्म, स्त, न, दे, नाना स्ल, पू, चि, ड, लि, क, ञ्चा, म्स्रो, ह, मनु, न, दृ,स्स, ए (चनतीस के) चोत्रीश अदर गुरु जाणवा. ___ तथा लिहाण बुहागरूप सिह स्तवने विषे हा, बा, ग्ग, व, बा, को, का, स्स, ६, स्स, किं, रका, स्स, म्म, क, हिं, 6, ता. हवी, 5, 6, हा, हा विं, च, म्म, दि. ६. स्त, गं, ए (ग तीस के ) एकत्रीश अदर गुरु के. तथा प्रणिधान त्रिकने विषे हे, वा, ब, के, ग्गा, ह, ६ि, ६, बा, ब, ब, ए (बार गुरुवामा के) बार गुरुवर्ण एटले नारे अकर जागवा॥ ___ एटले वर्ण संख्या, पद संख्या अने संपदा मली त्रण हार कह्यां, तेनी साथे पूर्वे कहेलां सात चार मेलवतां मूल दश हार कहेवाणां, अने न तर नेद १० श्रया. ए सूत्रांना अर्थ सर्व श्री आवश्यकनियुक्तिनी वृत्तिथी जाणजो. इहां घणो ग्रंथ वधे मोटे अर्थ लख्यो नथी ॥ ४० ॥
SR No.022326
Book TitleChaityavandanadi Bhashya Trayam Balavbodh Sahit
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendrasuri
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages332
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy