SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 57
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ देववंदन जाय अर्थसहित. ५७ यंत प्रागारा || प्रागंतुंग त्र्यागारा, नस्स ग्गावहि सरुव ॥ ३८ ॥ अर्थः-जे अंगीकार करवुं तेने अभ्युपगम क दीयें माटे इहां अरिहंत वांदवानी अंगीकाररूप प्रथम (अनुगमो के० ) अभ्युपगम संपदा जा एवी, तथा कानस्तग्ग कया निमित्तें कर करी यें ? ते बीजी (निमित्तं के० ) निमित्त संपदा जाणवी तथा श्रद्धादिक हेतु वधते वधते करी करियें, केम के श्रद्धादिक कारण विना निष्फल थाय माटें त्रीजी (हेन के० ) हेतु संपदा जाए वी: तथा धागार राख्या विना निरतिचारपणे कानस्लग्ग न थाय, एटला माटें ग्रागार राखवा नीली एवं इत्यादि नच्चासादिकने करवे करी चोथी ( इगवयंत के० ) एकवचनांत श्रागार संपदा जाणवी तथा " सुहुमेहिं अंगसंचालेहिं" एटले सूक्ष्म नेत्रादिकफुरकबादि मात्र आदिकें करी पांचमी ( बहुवयंत आगारा के० ) बहुवचनांत आगार संपदा जाणवी. इहां आगारा पद बेहुने जोमनुं, तथा एक सहज बीजो अल्पबाहुल्य ए
SR No.022326
Book TitleChaityavandanadi Bhashya Trayam Balavbodh Sahit
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendrasuri
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages332
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy