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________________ देववंदन नाष्य अर्थसहित. ४ पंच ॥ जोवविराहण पकि, कमण नेयनति नि चूलाए ॥३३॥ अर्थः-अन्युपगम एटले अंगीकार करवू ते आहीं पापना दयनुं जे आलोचना लक्षण कार्य तेनो अंगीकार करवो ते स्वरूप एटला माटे इ छामि पमिक्कमिन ए बे पदनी प्रश्रम (अनुवगमो के) अभ्युपगम संपदा जाणवी. २ ते अंगीकार कृत वस्तुने उपजाववाना का रण रूप इरियावहियाए विराहणाए बे पदनीबी जी, (निमित्नं के) निमित संपदा जाणवी. ३ सामान्य प्रकारे प्रायश्चित्त नपजाववा रूप गमणागमणे ए एक पदनी त्रीजी (उह के० ) नघ एटले सामान्य हेतु संपदा जागवी. एजाक हिंसा नपजाववानो सामान्य हेतु गमनागमन . ___४ जीवहिंसाना विशेष हेतु रूप एटले विशे षपणे प्राण वीजादिक आक्रमण रूप ते पागक मणे, बीयकमणे, हरियक्षमणे, नसा ननिंग प गग दगमट्टीमकमा संताणा संकमणे, ए चार
SR No.022326
Book TitleChaityavandanadi Bhashya Trayam Balavbodh Sahit
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendrasuri
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages332
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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