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________________ ३२६ श्री रत्नाकरपंचविंशिका. वचनेषु शान्तिः।नाध्यात्मलेशो मम कोऽपि देव, तार्यः कथंकारमयं जवाब्धिः॥२॥ अर्थः-(मम) मने (गुरूदितेषु) गुरुना बचनोने विषे-वचनोवळे (वैराग्यरंगः) वैराग्य नो रंग (न) थयो नहीं. (उर्जनानां) 5ष्ट ज नोनां (वचनेषु ) वचनोने विषे (शांतिः) शांति (न) अई नहीं. वली (कोऽपि ) कांई पण (अ ध्यात्मलेशः) अध्यात्मनो लेश (न) अयो नहीं. तो (देव) हे देव ! (अयं)श्रा (नवाब्धिः ) नवसागर (कथंकारं) शी रीते (तार्यः) मारे तरवो? ॥२२॥ पूर्वे नवेऽकारि मया न पुण्य, मागा मिजन्मन्यपि नोकरिष्ये । यदीडशोऽहंमम तेन नष्टा, भूतोद्भवद्भाविनवत्रयीश ॥२३॥ अर्थः-(मया) में (पूर्व) पूर्व (नवे) नवमां (पुण्यं) पुण्य (न अकारि ) कर्यु नश्री, अने (आगामिजन्मनि ) आबता जन्मने विषे (अपि) पण (नो करिष्ये) करीश नहीं. (यत्)
SR No.022326
Book TitleChaityavandanadi Bhashya Trayam Balavbodh Sahit
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendrasuri
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages332
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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