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________________ पञ्चरकाण प्राप्य अर्थसहित. जीवदयाई रमिकइ इंदियवग्गो दमि इसया वि ॥ सच्चं चेव चविकइ धम्म स्स रहस्स मिणमेव ॥ ५ ॥ २०६ t अर्थ : - ( जीवदया ) जीव दयाने विषे ( रमिर ) रमण करीये. (इंदियवग्गो) इंडि योना समुहने (दमिक ) दमन करीये. ( स चं) सत्यने (चेव ) निश्वे ( च विकाइ ) बोली ये ( इणमेव ) आज ( धम्मस्स ) धर्मनुं (रदस्तं) रहस्य तत्त्व बे. ॥ २ ॥ सीलं न हु खं मिऊइ न संव सिइ समं कुसी लेहिं ॥ गुरुवयणं न खलिक‍ जइनकइ धम्मपरमचो ॥ ३ ॥ अर्थ : - ( सीलं ) शीयल व्रतने ( हु ) निश्चे ( न खं मिइ ) न खंमन करीये. ( कुसीलेहिं ) कुशीलिया ( समं ) साथै ( न संवसिज्ज‍ ) न वास करीये. ( गुरुवयां ) गुरुना वचनने (न खलिकर) न नल्लंघन करीये. ए प्रकारे (ज‍) यतिए ( धम्मपरमो ) धर्मनो परमार्थ ( न
SR No.022326
Book TitleChaityavandanadi Bhashya Trayam Balavbodh Sahit
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendrasuri
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages332
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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