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________________ पञ्चस्काण नाष्य अर्थसहित. २५ गयो, तिहां धर्मदेशना सांजली अने पुरातन नव मत्स्य मांस पच्चरकाणादिक सर्व सनियु, बोधिलान पाम्यो, धर्मानुष्ठान साचवी देवलोके गयो. तिहांथी महा विदेहमा सुकुलमां नपजशे, तिहां बोधिलान पामी चारित्र लही केवलज्ञान पामी परंपराये मोदसुख पामशे,अने केटलाएक तेहीज नवे सिदिपामे. ए बे प्रकारे फलनुं न वमुंहार अयुं ॥ ___एटले सर्व मुलगुण प्रत्याख्यान सर्व उत्तरगु ण प्रत्याख्यान तथा अन्निग्रहादिक देश नत्तरगु ण पण होय, अने श्रावकने देश मूलगुण प्रत्या ख्यान ते अणुव्रत तथा देश उत्तर गुण प्रत्या ख्यान ते गुणवत अने शिदाव्रत जागवां. ते वली बेबे नेदे एक इत्वर ते त्रणकालि अनाग तादि पञ्चरका मूल नत्तर गुण पञ्चरकाण अने देश उत्तरगुण पञ्चस्काण ते शिक्षावतादि तथा देशे मूलगुण पञ्चरकाण अने सर्वेथी नुत्तरगुण पच्चरकाण अने मूलगुण क्रियारूपे एवं पञ्चरकाण धम्मिलादिकने जाणवू. इत्यादिक पक्षस्काणना
SR No.022326
Book TitleChaityavandanadi Bhashya Trayam Balavbodh Sahit
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendrasuri
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages332
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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