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________________ २७५ पञ्चरकाण नाष्य अर्थसहित. प्रकारनुं नक्ष्य विगयमां का ने, जेमाटे बोज थइ खटासे चलित रसपणुं पामीये एवी एक म दिरा, बीजुं सथी बाहेर नीकल्युं एवं माखण, त्रीजुं जीवित शरीरथी अलगुं थयुं एवं मांस, रुधिर तेपण एमज जाणवू, तथा चो) मधुपु माथी उपन्युं मधु, ए चारे पदार्थोने विषे अंतर मुहर्तमध्ये असंख्याता बे इंडिय जीव नपजे, तेमा मांसपेशी मध्ये तो पक्क तथा अपक्व तथा अग्नि नपरे पच्यमान एवो थको पण तेमांहे अ संख्य बेंश्यि तथा पंचेंश्यि तथा निगोद जीव अनंता पण पोते पोतानी मेले उपजता कह्या बे, तेमाटे ए चार विगय जे , ते सर्वथा अन्न क्ष्य वर्जनीय कही . ए त्रीश निविगनुं हुं हार पूर्ण प्रयु. उत्तर बोल ० थया ४१ हवे पञ्चरकाणना बे नांगानुं सातमुं हार कहे . पञ्चरकाणना बेदे , एक मूलगुणरुप अने बीजुं उत्तर गुणरुप तिहां साधुने मूलगुण ते पांच महाव्रत अने उत्तरगुण ते पिंमविशुद्धया
SR No.022326
Book TitleChaityavandanadi Bhashya Trayam Balavbodh Sahit
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendrasuri
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages332
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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