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________________ पञ्चरकाण जाप्य अर्थसहित. २४७ गइ (चनविद के० ) चार भेदे बे. ए ( महुमाई ho ) मधु आदिक (चन के० ) चार ( अमरका ho) अजय ( विगइ के० ) विगइ बे, तेना सर्व मली उत्तर भेद ( बार के० ) बार थाय ते सर्व ना मपूर्वक बागल कदेशे ॥ २७ ॥ हवे प्रथम व विगइना एकवीश नेद व्यक्त करी कहे बे. खीर घय दहि प्रतिनं, गुरु पक्कनं बरक विगईन ॥ गो महिसी नंटि य एलगाण पण ६ मह चनरो ॥ ३० ॥ अर्थः- प्रथम व जक्ष्य विगयनां नाम कहे बे. एक ( खीर के ) दुध, बीजो ( घय के० ) घृत, त्री जो (दहि के० ) दधि, ( के० ) वली चोथो ( तिनं के० ) तैल, पांचमो ( गुरु के‍ ) गोल, उठो ( पक्कान्नं के० ) पक्वान्न, ए (ब के० ) (कविगन के प ) नक्ष्यविगय जाणवा. एटले ए व विग जे बे, ते साधु तथा श्रावकने नक्षण करवा योग्य बे, माटे एने जक्ष्य विगय
SR No.022326
Book TitleChaityavandanadi Bhashya Trayam Balavbodh Sahit
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendrasuri
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages332
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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